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________________ २६] [ भगवान महावीरअजितके सिद्धान्तोके वल हुई हो तो आश्चर्य नहीं ! (देखो प्री० बुद्धिस्टिक इन्डियन फिलासफी पृष्ट २८८)। पांचवें मतप्रवर्तक पकुडकात्यायन थे । 'प्रश्नोपनिषद' में इनको ब्राह्मण ऋपि पिप्पलादका समकालीन बतलाया गया है और यह ब्राह्मण थे ।* इनकी मान्यता थी कि 'असत्तामेंसे कुछ भी उत्पन्न नहीं होता और जो है उसका नाश नहीं होता ।' (सतो नच्चि विनसो, असतो नच्चि सम्भवो । सूत्रकृताङ्ग २-१-२२) इस अनुरूपमें इनने सात सनातन तत्व बतलाये; यथा.(१) पृथ्वी (२) जल (३) अग्नि (8) वायु (५) सुख, (६) दुःख और (७) आत्मा, इन्हीं सातके सम्मिलन और विच्छेदसे जीवन व्यवहार है। सम्मिलन सुखतत्वसे होता है और विच्छेद दुखतत्वसे । इस कारण इनका परस्पर एक दूसरे पर कुछ प्रभाव है नहीं, जिससे किसी व्यक्तिको खास नुक्सान पहुंचाना भी मुश्किल है। पकुडकी प्रथम मान्यता साख्य, वैशेषिक, वेदात, उपनिषध, जैन और बौद्धोंके अनुरूप है। यद्यपि अतिम कुछ अटपटे ही ढंगका विवेचन है। यह शीत जलमें जीव होना भी मानते थे। ' इन मत प्रवर्तकोमें हम इस बातका खास उद्देश्य देखते हैं कि वह पुण्य-पापको मेटकर हिंसावादकी पुष्टि करते है। मबुद्धने भी मृतपशुओंके मांस खानेका निषेध नहीं किया, जैसे कि हम अगाडी देखेंगे। अस्तु, इससे जैनधर्मका इनसे पहिले अस्तित्व प्रमा *प्री बुबिस्टिक इन्डियन फिलासफी 'पृष्ट २८ । १ जैनसूत्र (S. B. E.) भाग २-भूमिका XXIV. २ हिस्टॉरीकलग्लीनिंग्स पृष्ठ ३४ । ३ जैनस्त्र (S. B. E.) भाग २ भूमिका XXIV.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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