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[ भगवान महावीरमहावीरजीने उसे शिष्य बनाया तब उसने वस्त्रादि उतारकर फेंक दिये थे। (देखो उपाशकदशासुत्र Biblo Ind. का 'परिशिष्ट) इस दगामें महावीरजी पर गोशालका प्रभाव पड़ा ख्याल करना कोरा ख्याल ही है।
तीसरे संजयवैरत्थीपुत्रको बौद्धशास्त्रोमें मोग्गलान (मौद्गलायन) और सारीपुत्तका गुरु वतलाया गया है। उपरान्त संजयके यह दोनो शिप्य बौद्धधर्ममें दीक्षित होगये थे। मौदलायनके विषयमें हमे श्री अमितगति आचार्यके निम्न श्लोकसे विदित होता है कि यह पहिले जैन मुनि था:
"रुष्टः श्रीवीरनाथस्य तपस्वी मौडिलायनः। . शिष्यः श्रीपार्श्वनाथस्य विदधे बुद्धदर्शनम् ॥६॥
शुद्धोदनसुतं बुद्धं परमात्मानमब्रवीत् ।"
अर्थात-"पार्श्वनाथकी शिष्यपरम्परामें मौडिलायन नामका तपस्वी था । उसने महावीर भगवानसे रुष्ट होकर बुद्धदर्शनको चलाया और शुद्धोदनके पुत्र बुद्धको परमात्मा कहा " श्लोकके इस कथनपर शायद कतिपय पाठक ऐतराज करें, क्योंकि बौडदर्शनके संस्थापक तो स्वयं म० बुद्ध थे, परन्तु बौद्ध शास्त्रोमें मौडिलायन (मौद्गलायन) और सारीपुत्त विशेष प्रख्यात् थे और वे बौद्धधर्मके उत्कट प्रचारक थे, ऐसा लेख है । इस अपेक्षा यदि मौद्गलायनको ही बौद्धदर्शनका प्रवर्तक बतलाया गया है, तो कुछ अत्युक्ति नही है। स्वयं बौद्ध ग्रन्थों में भी भगवान महावीरके सम्बन्धमें ऐसी ही गल्ती कीगई है। उनमें एक स्थान पर उनका उल्लेख 'अग्गिवेसन'
, महावग्ग ।। २३-२४ । २ हिस्टॉकिलग्लीनिंग्स पृष्ठ ४५ ॥
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