________________
-और म. वुद्ध]
[२१ न्तम् करिस्सन्ति)।' पाताअलिने भी अपने पाणनिसूत्रके भाष्यमें गोशालके सम्बन्धमें कुछ ऐसा ही सिद्धान्त निर्दिष्ट किया है। वहां लिखा है कि वह 'मस्करि' केवल बांसकी छड़ी हाथमें लेनेके कारण नहीं कहलाता था; प्रत्युत इसलिए कि वह कहता था-" कम मत करो, कर्म मत करो, केवल शान्ति ही वाञ्छनीय है ।" (मा कत कर्माणि, मा कृत कर्माणि इत्यादि)। 'इसतरह मक्खलिगोशालकी मान्यता थी, परन्तु अन्तमें भगवान महावीरके दिव्य उपदेशके धवल प्रकाशमें मक्खलिगोशालका महत्त्व जाता रहा और वह एक पागलकी भांति मृत्युको प्राप्त हुआ। श्वेताम्बर शास्त्रोंमें इसे भगवान महावीरका शिप्य बतलाया है, परन्तु यह ठीक नहीं है क्योंकि भगवान महावीर छद्मस्थ अवस्थामें उपदेश देते • अथवा बोलते नहीं थे, यह स्वय श्वेताम्बर शास्त्र प्रकट करते हैं । ऐसी दशामें उस अवस्थामें गोशालका भगवानका शिष्य होना असंगत है।
श्वे० के इस मिथ्या कथनके आधारसे लोगोंका ख्याल है कि महावीरजीने गोशालसे बहुत कुछ सीखा था और वह नग्न इसीके देखादेखी हुये थे, परतु ऐसी व्याख्यायें निरी निर्मूल हैं, यह हम अन्यत्र बता चुके हैं। ( वीर वर्ष ३ अंक १२-१३ स्वयं श्वे० ग्रन्थ भगवतीसूत्रमें कहा गया है कि जब गोशाल महावीरजीसे मिला था तब वह वस्त्र पहने हुए था और जब
१ हिस्टॉरीकल ग्लीनिन्गस पृष्ठ ३९ । २ आजीविक्स प्रथम भाग पृर १२ । ३ हमारा 'भगवान महावीर ' पृष्ठ १७९ । ४ दी हार्ट ऑफ जैनीम पृष्ठ ६० । ५ “भगवतीसूत्र १५। ६ आचारागसूत्र (S. B.E ) पृष्ठ ८०-८७