________________
-और म० बुद्ध ]
[१९ 'अक्रियावाद में की है। यद्यपि दिगम्बर शास्त्र 'दर्शनसार ' में मस्करि गोशालि पुत्र ( मक्खलिगोशाल) और पूर्णकाश्यपको एक व्यक्ति मानकर इनके मतकी गणना 'अज्ञानवाद में की है। इस मतभेदका कारण अन्यत्र देखना चाहिये। पूर्णकाश्यपकी इसप्रकार आत्माके निष्क्रियपनेकी मान्यताका आधार ब्राह्मण ऋषि भारद्वाज और नचिकेतोंके सिद्धान्तमें ख्याल किया जाता है; यद्यपि श्वे० टिकाकार शीला काश्यपके सिद्धान्तोकी सादृश्यता सांख्यमतसे बतलाता है। (देखो प्री० बुद्धिस्टक इन्डियन फिलासफी पृष्ठ २७९ ) परन्तु यदि हम भगवान पार्श्वनाथके उपदेश पर दृष्टि डालें तो हम जान जाते है कि काश्यपने भगवान पार्श्वनाथकी निश्चयनयका महत्व भुलाकर केवल एक पक्ष केवल अपने मतकी पुप्टी की थी। निश्चयनयकी अपेक्षा मूलमें आत्मा.सब सांसारिक क्रियायोसे विलग है, यही भगवान पार्श्वनाथका उपदेश था । अतएव फाश्यप पर उन्हींक उपदेशका प्रभाव पड़ना चाहिए।
इसके बाद दूसरे मतप्रवर्तक मक्खलिगोशालथे । यह भी नग्न रहते थे। यह पहले भगवान पार्श्वनाथकी शिष्यपरंपराके एक मुनि थे; परन्तु निस समय भगवान महावीरके समवशरणमें इनकी नियुक्ति गणधरपद पर नहीं हुई तो यह रुष्ट होकर श्रावस्तीमें
आकर आजीवकोंके सम्प्रदायके नेता बन गये और अपनेको तीर्थ• .' - हिस्टॉरिकल ग्लीनिन्गस पृष्ठ ३६ । '
२-इसका क्या कारण है, इसके लिए हमारा लेख "वीर" वर्ष । के जयंती अंक' और 'दिगम्बर जैन' के वीर नि० सं० २४५२ के विशेषांकमें देखना चाहिये ।