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[ भगवान महावीरकथा मिलती है। जिस पर विश्वास करनेको जी नहीं चाहता। वस्तुतः उस कालमें नग्नत्व साधुपनेका एक-चिह्न माना जाने लगा था, जैसे हम अगाडी देखेंगे, परन्तु यहांपर इससे यह स्पष्ट है कि इस समय जो. नग्न श्रमण जैसे पूर्णकाश्यप, मक्खलि गोशाल
आदि मिलते थे वह नग्नभेष इसी जनमान्यताके अनुसार ग्रहण किये हुये थे । बौद्धग्रन्थमें पूरणके विषयमें यही कहा गया है कि पूरणने वस्त्र ग्रहण करनेसे इसीलिए इन्कार कर दिया था कि नग्न दशामें उसकी मान्यता विशेष होगी। अस्तु ("Pumara Kassapa declined accepting clothes thinking that as a Digambara le would be better respected. " Ind. Ant : Vol. IX. P. 162 ). पूर्णकाश्यप एवं अन्य चारों मत. प्रवर्तक भगवान महावीर और म० बुद्धसे आयुमें बडे थे।' और यह अपनेको तीर्थकर कहते थे, उसका कारण शायद यह था कि भगवान पार्श्वनाथके उपरांत एक तीर्थङ्करका जन्म लेना और अवशेष था इसलिये यह लोग अपनेको ही तीर्थदर प्रक्ट वरने लगे थे।' इन नामधारी तीर्थक्षरोंमे केवल निग्रन्थ नातपुत्त (महावीर) को छोड़कर शेष सबका तीव्र खण्डन बौद्ध ग्रन्थोमें किया गया है। वहा पूर्णकाश्यपकी मान्यताओंका उल्लेख हमें यह मिलता है कि "मनुष्य जो कार्य स्वयं करता है अथवी दूसरेसे करवाता है, वह उसकी आत्मा नहीं करती है और न करवाती है। (एवम् अकार्यु अप्पा) ।" इस अपेक्षा न और बौद्ध दोन ने इसके मतकी गणना
१ हिस्टॉरीक्ल लीनिन्गस पृ०1१-301
२ टेखो हमारा 'भा वान महावीर पृष्ठ १८५।। ३ हिटॅरीव ल न्लीनिःग् पृष्ठ १७-१८१४ सूत्रराङ्ग १-१-१३