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- और म० बुद्ध ]
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पोषक विप्रोके साथ २ चले आरहे थे । अन्ततः भगवान पार्श्वनाथके उपदेशको सुनकर इनमें से भी ऋषिगण अलंग होकर अपनी स्वतंत्र आम्नाय “आजोवक” नामक बना चुके थे'। इनकी गणना दूसरे दल में की जाती है । यह दूसरा दल ज्ञान और ध्यानके साथ २ चारित्रको विशेष आदर देता थी । इसकी मान्यता थी कि विना चारित्रके मनुष्य आत्मोन्नति कर ही नहीं सक्ता है । इस दलके प्रख्यात प्रवर्तकों की संख्या म० बुद्धने अपने सिवाय छह बतलाई है । इनको वह 'तित्थिय' कहते थे । इनके नाम इस तरह बताये गये है (१) पूर्णकाश्यप (२) मस्करि गोशा लिपुत्र ( मक्खलि गोशाल) (३) सजयवैरत्थी पुत्र (४) अजितकेशकम्बलि (५) पकुढकात्यायन और (६) निगन्थनातपुत्त ( महावीर ) । और यह प्रत्येक अपने २ "सघके नेता, गणाचार्य, तीर्थकर, तत्ववेत्तारूपमे विशेष प्रख्यात्, मनुष्यों द्वारा पूज्य अनुभवशील और दीर्घ आयुके समन (श्रमण) "* बतलाये गए हैं । इनमें म० बुद्ध और भगवान महावीर विशेष प्रख्यात है । अतएव इनके विषय मे खासी तौरपर परिचय पानेका प्रयत्न निम्न पृष्ठों किया जायगा, परन्तु शेषके पांच मतप्रवर्तकोंके विषयमे भी यहां पर किंचित ज्ञान प्राप्त कर लेना बुरा नही है ।
पहले पूर्णकाश्यपके विषयमें बतलाया गया है कि वह नग्न श्रमण थौं । नग्न श्रमण वह कैसे हुआ इसके लिये एक अटपटी
१ भेरा "भगवान महावीर" पृठ १७७-१७९ ।
२ जैसे मं०' बुद्धका 'मध्ये मार्ग (महावगा १-६) और जैनियों का 'मोक्षमार्ग ( तत्वार्थत्र १ - १ )
3 दिव्यावदान पृ० १४३ | ४ दीघनिकाय प्रथम भाग पृष्ठ ४७-४९ ॥ ५ मरा "भगवान महावीर" पृ० १८४ |
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