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________________ १६ ] [ भगवान महावीर २ थोथे क्रियाकाण्डोको हेय दृष्टि से देखने लगे थे । इस दशामे उस समय धार्मिक वातावरण में दो विभाग स्पष्टतः नजर आते थे । एक तो प्राचीन क्रियायों और यज्ञ रीतियोंका कायल ब्राह्मण वर्ग था और दूसरा नवीन सुधारको समक्ष लानेवाला 'समण' (भ्रमण) दल थी । यह द्वितीय दल अनेक प्रतिशाखाओं में विस्तृत मिलता था । जैन शास्त्र इनकी संख्या तीन सौ त्रेसठ बतलाते हैं, परन्तु बौद्ध सिर्फ त्रेसठ ही, इस मतभेदका निष्कर्ष यही प्रतीत होता है कि उस समय अनेक विविध पंथ प्रचलित थे । सामाजिक क्रांतिके दौरदौरेमे जो कोई भी ब्राह्मणके विरुद्ध कितने भी लचर सिद्धातोको लेकर खडा हो जाता था, उसीको लोग अपनाने लगते थे । विशेषकर क्षत्रिय वर्ण ऐसे विरोधकोंका सहायक बन रहा था और वह उनके लिये मंदिर, आराम आदि भी बनवा देता था । * ४ प्रथम ब्राह्मण वर्ग विशेषकर यज्ञ क्रियाओं और पशु बलि दानको मुख्यता देता था और उनमें जो विशेष उन्नति किए हुए परिव्राजक लोग थे, जिनकी उपनिषद् आदि रचनायें प्रसिद्ध हैं, वह ज्ञान और ध्यानको ही आत्मस्वातंत्र्यके लिये आवश्यक समझते थे ।" ऋपिगण भगवान पार्श्वनाथ के पहिलेसे ही बलिदान १ सुत्तनिपात (S. B. E. Int10) XII. २ अगपण्णन्ति गाथा न० ७३ । ३ सुत्तनिपात ( S. B. E ) ५३८ । ४ सान्डर्स गौतमबुद्ध पृष्ठ १७ । ५ साख्नसूत्र २१२४, न्यायसूत्र १-१-१, और पेशे पत्रसूत्र *१-१--४ ।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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