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- और म० बुद्ध ]
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स्थामें हलचल खड़ी हो गई थी; क्योंकि भगवान नेमिनाथके दीर्घ अन्तराल कालमें - ब्राह्मण संप्रदायका प्राबल्य अधिक बढ़ गया था और चिप्रगण अपने स्वार्थमय उद्देश्योंकी पूर्तिमे मनुष्य समाजके प्रारंभिक स्वत्वोंको अपहरण कर चुके थे। इस दशा में जब भगवान पार्श्वनाथने जनताको वस्तुस्थिति बतलाई तो उसके कान खडे हो गये, और उसमेंसे प्रभावशाली व्यक्ति अगाडी आकर-ब्राह्मणों द्वारा प्रचलित सामायिक व्यवस्थाके विरुद्ध लोगोको उपदेश देने लगे । फलतः एक सामाजिक क्रातिसी उपस्थित हुई । जिसका शमन म० बुद्ध और फिर पूर्णतः भगवान महावीर के अपूर्व उपदेशसे हुआ । जिन सुधारोंकी आवश्यक्ता थी, वह सुगमतासे पूर्ण हुए और मनुप्योमें आपसी भेद अधिक बढ़ रहे थे उनका अन्त हुआ । तत्कालीन जैन और बौद्ध विवरणोत्रो ध्यान पूर्वक पढ़नेसे यही परिस्थिति प्रति भाषित होती है । सचमुच इस समय भी आर्यत्वकी रक्षा के लिये भगवान महावीरके दिव्य सदेशको दिगन्तव्यापी बनानेकी आवश्यक्ता है । मनुष्य समाज उससे विशेष लाभ उठा सक्ता है ।
जिस तरह हम सामाजिक परिस्थितिके सम्बन्धमें देखते हैं कि उस समय उसमे एक क्रान्तिसी उपस्थित थी; ठीक यही दशा धार्मिक वातावरण में होरही थी । सर्वत्र अशान्तिका साम्राज्य था । ईसासे पूर्व आठवीं शताव्दि में भगवान पार्श्वनाथने जो उपदेश दिया उसका जो प्रभावकारी फल हुआ उसका दिग्दर्शन हम ऊपर कर चुके हैं । सचमुच लोगोको राज्यनैतिक और सामाजिक स्वत
नाके उस समृद्धशाली जमानेमे अपने असली स्वाधीनता - आत्मस्वातंत्र्यको प्राप्त करनेकी धुन सवार होगई थी और वह प्रचलित