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________________ १४] [ भगवान महावीर। अर्थात्-सतान क्रमसे चले आये हुये जीवके आचरणकी / गोत्र सज्ञा है। जिसका ऊंचा आचरण हो उसका उच्च गोत्र और । जिसका नीच आचरण हो उसका नीच गोत्र है।" यह नही है कि यदि कोई व्यक्ति नीच वर्णमे उत्पन्न हुआ है और वह सत्संगतिको पाकर अपने आचरणको सुधारकर उन्नत बना ले तो भी वह नीच बना रहे, प्रत्युत उसके उचाचरणी होने पर उसका गोत्र भी यथा समय उच्च हो जावेगा। भगवान महावीरके इस यथार्थ सदेशसे जनताको वास्तविक परिस्थितिका पता चल गया और वह आपसके अमानुषी व्यवहारको तिलाञ्जलि देकर प्रेमपूर्ण व्यवहार करने पर उतारु हो गई । आधुनिक विद्वान् भी इस अपूर्व घटनापर आश्चर्य प्रगट करते हैं, किन्तु सत्यके साम्राज्यमें ऐसी घटनाओका घटित होना स्वाभाविक है। इस तरह उस समयकी सामाजिक परिस्थिति भी इस समयसे विशेष उदार थी और थोथी ढकोसलेवानीको उसमें स्थान शेष नहीं रहा था । भगवान पार्श्वनाथके दिव्योपदेशसे सामाजिक व्यव - , कवि सम्राट् सर खोन्द्रनाथ ठाकुरने स्पष्ट शब्दोंमें भगवान महावीरके इस दिव्य प्रभावका महत्व स्वीकार किया है। देखो "भगवान महावीर" पृष्ट २७१५.15 .. २ भगवान पार्श्वनाथ, भगवान महावीरके पूर्वागामी और जैन धर्म माने- हुए २४ तीर्थरोंमें २ थे। आधुनिक विद्वानोंने इनको ईसासे ८वीं-९वीं शताब्दिका ऐतिहासिक व्यक्ति स्वीकार किया है। २२वें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ इनसे बहुत पहले हुए थे। वे श्री कृष्णके समकालीन थे।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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