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________________ -और म० बुद्ध ] इसके अतिरिक्त ब्राह्मणोके क्रियाकांडके एव सर्व प्रकारकी सामाजिक परिस्थितिके पुरुष-स्त्रियोंके परस्पर सम्बन्धके भी उदारण मिलते हैं और यह उदाहरण केवल उच्च परिस्थितिके ही पुरुष और नीच कन्याओंके संबंधके नहीं है, बल्कि नीच पुरुष और उच्च स्त्रियोके भी हैं।'' अतएव वस्तुत. उस समय ऐसी सामाजिक परिस्थित होना कुछ अचरज भरी बात नहीं है। स्वयं म० बुद्ध और भगवान महावीरके उपदेशसे सामाजिक परिस्थितिकी उल्झी गुत्थी प्रायः सुलझ गई थी। म० बुद्धने स्पष्ट रीतिसे कहा था कि कोई भी मनुष्य जन्मसे ही नीच नहीं होता है बल्कि वह द्विजगण जो हिंसा करते नहीं हिचकते हैं और हृदयमें दया नहीं रखते है, वही नीच है। 'वासेट्ठसुत्त' मे जब ब्राह्मणोसे वाद हुआ तब बुद्धने कहा कि "जन्मसे ब्राह्मण नही होता है, न अब्राह्मण होता है कितु कर्मसे ब्राह्मण होता है और कर्मसे ही अब्राह्मण होता है / " 3 भगवान महावीरने अपने अनेकात तत्वके रूपमे इस परिस्थितिको विलकुल ही स्पष्ट कर दिया। उन्होने कहा कि जन्मसे भी ब्राह्मण आदि होता है और कर्मसे भी। आचरणपर ही उसका महत्व अवलवित बतलाया / स्पष्ट कहा है कि: " संताणकमेणागय जीवयणरस्स गोदमिदि सण्णा / उच्चं नीचं चरण उच्च नीच हवे गोदं // " // गोमहसार // - - 1 देखो बुद्धिस्ट इडिया' पृष्ठ 55-59 / 2 सुत्तनिरात (SBE) 117 / 3 सुत्तनिपात (SBE ) 135 /
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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