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________________ -और म० चुद्ध [११ राज्यकीय स्वतत्रताके उस युगमे लोगोको ब्राह्मणोकी यह भेदव्यवस्था और एकाधिपत्य अखर उठा । प्रचलित सामाजिक व्यवस्थाके इन्धनोका उल्लंघन किया जाने लगा। सचमुच वर्तमानमें जो सामाजिक क्रान्ति कुछ अस्पष्ट रूपमे दिखाई पड़ रही है, ठीक वैसी ही क्रान्ति उस समय के समाजमे अपना रंग ला रही थी । ब्राह्मणोंने नहा स्वार्थभरे कठोर नियम सिरज रक्खे थे वहां बिल्कुल ढिलाईसे काम लिया जाने लगा । सामाजिक नियमोमे सबसे मुख्य विवाह नियम है सो उस समय इसका क्षेत्र विशेष विस्तृत था और इसकी वह दुर्दशा नहीं थी जो.आजकल होरही है । युवावस्थामें वर-कन्याओके सराहनीय विवाह सम्बन्ध होते थे | उनमें गुणोका ही लिहाज किया जाता था । जैन और बौद्धशास्त्रोमे इस व्याख्याकी पुष्टिमे अनेकों उदाहरण मिलते है। ऐसा मालूम __ होता है कि उस जमानेमें व्यक्तिगत विवाह सम्बन्धकी स्वाधीनताने इतना उग्ररूप धारण किया था कि किन्हीं २ राज्योमें विवाहसम्बन्धके खास नियम भी बना लिये गये थे। इस व्याख्याके अनुरूप अभीतक केवल एक वेशालीके लिच्छवियोके विषयमें विदित है। उनके यहां यह नियम था कि वैशालीकी कन्यायें वैशालीके वाहर न दी जावें । तथापि जिस तरह वैशाली तीन खण्डों-(१) क्षत्रिय खण्ड, (२) ब्राह्मण खण्ड और (३) वैश्य खण्ड-में विभाजित थी उसी तरह इनके निवासियोमे अपने और अपनेसे इतर खण्डकी कन्यासे विवाह करनेका नियम नियत था। शायद इस ही कारणसे १ देखो विवाहक्षेत्रप्रकाश । २ देखो 'हिस्टॉरीक्ल ग्लीनिन्गूस' पृष्ठ ७३ ।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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