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________________ [ भगवान महावीर कानूनोकी किताव भी मौजूद थी और 'फुलवेन्चकी' तरह 'अट्ठकूलको न्यायालय सदृश न्यायालय भी थे । इस प्रजातत्रात्मक गणराज्यका आदर्श हमें उस समय के लिच्छवि क्षत्रियोंके विवरणमे मिलता है।' जैन और बौद्ध ग्रथ इनके. विषयमे प्रचुर प्रकाश उपस्थित करते है। इन ग्रथोके अध्ययनसे मालूम होता है कि उस समय प्रख्यात् गणराज्य इसप्रकार थे (१) लिच्छिवि गणराज्य-इसमें इक्ष्वाक्वंशीय क्षत्रियोंका आधिक्य था और इसकी राजधानी विशाला अथवा वैशाली विशेष समृद्धिशाली नगरी थी । इस गणराज्यके प्रधान राजा चेटक थे। बौद्धग्रंथ इस राज्यमें आठ कुलोंके क्षत्रियोका प्रतिनिधित्व बतलाते है, परन्तु जैनोके ग्रंथमें उनकी संख्या नौ है । इस गणराज्यकी राजधानी वैशालीके निकट अवस्थित कुन्डपुर अथवा कुन्डनगरके क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ थे, जो भगवान महावीरके पिता थे। वे सभवतः इसी गणराज्यमें समिलित थे और इसी कारण भगवान महावीरका उल्लेख कभी २ 'वैशालिय' के रूपमें हुआ है । वह गणराज्य विशेष समृद्धिशाली था और यहां जैनधर्मकी मान्यता अधिक थी। काशी और कौशलके गणराज्य, जिनके प्रतिनिधि (जो 'राजा' कहलाते थे) श्वे. जैन शास्त्र कल्पसूत्र में अठारह बतलाये गये है, सभवतः इनसे सम्बंधित थे । इन सब गणराज्योकी १. देखो वर्तमान लेखककी 'भगवान महावीर' नामक पुस्तक । (पृष्ट ५७) २. जैनसूत्र । सेक्रेड बुक्स ऑफ दी ईस्ट । भाग २२ पृष्ट २६६ । ३. क्षत्रिय क्लैन्स इन बुधिस्ट इन्डिया-(वैशाली और लिच्छिवि) पृष्ट ८६ ।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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