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________________ -और म० बुद्ध ] [५ ईसाकी छठी शताब्दि भारतके लिये ही नहीं बल्कि सारे संसारके लिए एक अपूर्व शताब्दि थी। कोई भी देश ऐसा न बचा था जो इसके क्रांतिकारी प्रभावसे अछूता रहा हो । भारतमें इसका रोमांचकारी प्रभाव खूब ही रङ्ग लाया था। राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक सब ही अवस्थाओमें इसने रूपान्तर लाकर खडे कर दिये थे । मनुष्य हर तरहसे सच्ची स्वाधीनताके उपासक बन गये थे, परन्तु इसमें उस समयके दो चमकते हुए रत्नों -भगवान महावीर और म० बुद्ध-का अस्तित्व मूल कारण था । ____ उस समय यहांकी राजनैतिक परिस्थिति अनव रङ्ग लारही __ थी। साम्राज्यवादका प्रायः सर्व ठौर एकछत्र राज्य नहीं था, प्रत्युत प्रजातंत्रके ढंगके गणराज्य भी मौजूद थे। एक ओर स्वाधीन राजा ओकी वांकी आनमें भारतीय प्रजा सुखकी नींद सो रही थी; तो दूसरी ओर गणराज्योंके उत्तरदायित्वपूर्ण प्रवधमें सब लोग स्वतंत्रता पूर्वक स्वराज्यका उपभोग कर रहे थे । दोनो ओर रामराज्य छा रहा था। इन गणराज्योका प्रबंध ठीक आजकलके ढंगके प्रनातत्रात्मक राज्योकी तरह किया जाता था। नियमितरूपसे प्रति. निधियोंका चुनाव होता था; जो राज्यकीय मन्डल अथवा 'सांथागार' में जाकर जनताके सच्चे हितकी कामनासे व्यवस्थाकी योजना करते थे । न्यायालयोंका प्रबंध भी प्रायः आजकलके ढंगका था; परन्तु उस समय वकील-वैरिटरोंकी आवश्यक्ता नहीं थी। न्यायाधीश स्वयं वादी-प्रतिवादीके कथनकी जांच करते थे और यही नहीं कि प्रारंभिक न्यायालय जो जांच करदे वही बहाल रहे, प्रत्युत ऊपरके न्यायालय भी स्वयं स्थितिकी पड़ताल करते थे। प्रचलित
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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