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-और म० बुद्ध ]
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ईसाकी छठी शताब्दि भारतके लिये ही नहीं बल्कि सारे संसारके लिए एक अपूर्व शताब्दि थी। कोई भी देश ऐसा न बचा था जो इसके क्रांतिकारी प्रभावसे अछूता रहा हो । भारतमें इसका रोमांचकारी प्रभाव खूब ही रङ्ग लाया था। राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक सब ही अवस्थाओमें इसने रूपान्तर लाकर खडे कर दिये थे । मनुष्य हर तरहसे सच्ची स्वाधीनताके उपासक बन गये थे, परन्तु इसमें उस समयके दो चमकते हुए रत्नों -भगवान महावीर और म० बुद्ध-का अस्तित्व मूल कारण था ।
____ उस समय यहांकी राजनैतिक परिस्थिति अनव रङ्ग लारही __ थी। साम्राज्यवादका प्रायः सर्व ठौर एकछत्र राज्य नहीं था, प्रत्युत प्रजातंत्रके ढंगके गणराज्य भी मौजूद थे। एक ओर स्वाधीन राजा
ओकी वांकी आनमें भारतीय प्रजा सुखकी नींद सो रही थी; तो दूसरी ओर गणराज्योंके उत्तरदायित्वपूर्ण प्रवधमें सब लोग स्वतंत्रता पूर्वक स्वराज्यका उपभोग कर रहे थे । दोनो ओर रामराज्य छा रहा था। इन गणराज्योका प्रबंध ठीक आजकलके ढंगके प्रनातत्रात्मक राज्योकी तरह किया जाता था। नियमितरूपसे प्रति. निधियोंका चुनाव होता था; जो राज्यकीय मन्डल अथवा 'सांथागार' में जाकर जनताके सच्चे हितकी कामनासे व्यवस्थाकी योजना करते थे । न्यायालयोंका प्रबंध भी प्रायः आजकलके ढंगका था; परन्तु उस समय वकील-वैरिटरोंकी आवश्यक्ता नहीं थी। न्यायाधीश स्वयं वादी-प्रतिवादीके कथनकी जांच करते थे और यही नहीं कि प्रारंभिक न्यायालय जो जांच करदे वही बहाल रहे, प्रत्युत ऊपरके न्यायालय भी स्वयं स्थितिकी पड़ताल करते थे। प्रचलित