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________________ ४] [ भगवान महावीर अपना गुरु मानकर यूनान सदृश उन्नतशाली देशके विद्वान् जैसे पैरहो ( Pyrrho ) यहां विद्याध्ययन करने आते थे, परन्तु आज उल्टी गंगा बह रही है। स्वयं भारतीय इन विदेशों में जाकर ज्ञानोपार्जनका मिस कर रहे है और उन देशोकी नकल आंख मींचकर किये चले जारहे हैं । इस भौतिक-सभ्यताकी उपासनाका कितना क्टु परिणाम भारतको शीघ्र ही भुगतना पड़ेगा, यह अभी इस देशके अधिवासियोकी समझमें नहीं आया है, परन्तु जमाना उनकी आंखें खोलेगा अवश्य । और तब वे प्राचीन भारतकी और आशाभरे नेत्रो से देखेंगे । इसलिये यहापर प्राचीन और अर्वाचीन भारतकी तुलना न करके हम उसकी ईसासे पूर्व छठी शताब्दिमे जो दशा थी उसका ही किचित् दिग्दर्शन करके उस समयके उन दो चमकते हुये रत्नोका परिचय प्राप्त करेंगे, जिनके प्रति भाज पाश्चमीय सभ्यता के विद्वान् भौरे बने हुये है । किसी भी देशकी किसी समयकी हालत जाननेके लिये उस देशकी राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक परिस्थितिको जानना आवश्यक है । जबतक उस देशकी इन सब दशाओं का चित्र हमारे नेत्रोके अगाडी नही खिच जायगा तबतक उस देशका सच्चा और यथार्थ परिचय पाना कठिन है । आज भारतियोके पतनका यह भी एक मुख्य कारण है कि वे अपने प्राचीन पुस्पोके इतिहास से प्रायः अनभिज्ञ है । प्रत्येक जातिका उत्थान उसके प्राचीन आढगको उसके प्रत्येक सदस्यके हृदयमें बिठा देने पर बहुत कुछ अवलम्बित है, अतएव यहांपर हम उस समयके भारतकी इन दशाओंका विचित वृत्त निम्न मे अंकित करते हैं ।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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