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- और म० वुद्ध ]
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एक अवस्थाका जन्म होता है तो उसका अस्तित्व होजाता है; परन्तु उसके नाशके साथ ही दूसरी अवस्था उत्पन्न हो जाती है । यह क्रम योही चालू रहा है और अगाडी रहेगा । यही संसार है । अब हम सहज समझ सक्ते हैं कि भारतवर्ष मूलमें तो वही है जो युगो पहले था, परन्तु उसकी हर अवस्थामें अनेकों रूपान्तर समयानुसार अवश्य हुए हैं । यही उसका वास्तविक रूप है । अस्तु;
भारतवर्ष मूलमें तो वही है जो भगवान महावीर और म० बुद्धके समयमें था; परन्तु तबकी दशा और अत्रकी दशा इस प्राचीन भारतकी अवश्य ही जमीन आस्मान जैसा अन्तर रखती है। इतना महत अंतर और फिर एकता । यही यथार्थ सत्यकी विचित्रता है । आज कर्णफूलों और गले बन्दसे कामिनीकी शोभा बढ रही थीकल तबियत बदली - कर्णफूल और गलेबन्द नष्ट कर दिये गये - चदनहार और कंपन उसके वक्षस्थल एव करोंको अलंकृत करने लगे। यहां तो पूरा कायापलट होगया, परंतु सोना तो वहीका वही रहा; मूल उसका जब था सो अब
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अस्तु, भारतवर्ष वही है जो भगवान महावीर और म० बुद्धके समयमें था; परन्तु उसमे हर तरफसे उलट फेरके चिन्ह नजर आते | आज यहांके मनुष्य ही न उतने प्रतिभा और शक्तिसम्पन्न है और न उतने दीर्घजीवी हैं । आजके भारतकी नैतिक और धार्मिक प्रवृत्ति न उस समय जैसी है और न उसकी प्रधानताका सिक्का किसीके हृदयपर जमा हुआ है । आज यहांके निवासी बिलकुल दीन-हीन रक बने हुये है । वुद्धि, बल, ऐश्वर्य सबका दिवाला निकाले वैठे हैं । तबके भारतका अनुकरण अन्य देश करते थे और उसको
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