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[ भगवान महावीरविषयमें यह अवश्य संशयात्मक है कि वस्तुतः क्या इनमे सर्व ही आर्यवंशन हैं ? परन्तु इतना तो स्पष्ट ही है कि मूल में भारतवासी आर्य हैं और जब यह आर्य है तब इनके रीति रिवाज भी प्राचीन आर्यों जैसे होना ही चाहिये ! किन्तु यदि यही बात सच है कि जो दशा पहले-मुद्दतों-युगो पहले थी वही आज है तो फिर ससारमें परिवर्तनशीलताका अस्तित्व कहां रहा ? क्या युगों पहलेके भारतवर्षमे और आनके भारतवर्षमें कुछ भी अन्तर नहीं है ? भारतवर्षका ज्ञात इतिहास इस बातका स्पष्ट दिग्दर्शन करा देता है कि नहीं, भारतवर्ष जैसा १५ वीं ६ वी शताब्दिमे था वैसा आन नहीं है और जैसा ईसाकी प्रारभिक शताब्दियोंमें था वैसा उपरोक्त मध्यकालीन शताब्दियोमें नही था तो फिर उसका सनातनरूप कहां रहा ? वह जैसा पहले था वमा आज है यह कैसे माना जाय ? बात बिल्कुल ठीक है, भारतका रूप, भारतकी दशा और भारतकी आकति समयानुसार रङ्ग बदलती रही है, परन्तु क्या कभी उस क्षेत्रका अभाव हुआ जो भारतवर्ष कहलाता है अथवा वहाके अधिवासियों का अन्त हुआ नो भारतवासी कहलाते हैं ? नहीं, यह सब बातें ज्योंकी त्यो रही है। ऐसी अवस्थामें सामान्यत यहां पर एक गोरखधन्धाता नेत्रोके अगाडी उपस्थित होजाता है, किन्तु यदि उमका निर्णय यथार्थ सत्यके प्रकाशमेंवस्तु-स्थितिक धवल उज्ज्वल आलोकमे बरें तो हम स्थितिको सहन सहज समझ जाते है।
समारमें जितनी भी वस्तुयें है वह सत्रूप है। उनका कभी नाश नहीं होता, किन्तु उनमें परिवर्तन अवश्य होता रहा है ।