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ॐ नमः सिद्धभ्य ।
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भगवान महावीर और
महात्मा बुद्ध ।
मगलाचरण । " यो विश्व वेद वेद्यं जननजलनिर्भगिनः पास्श्वा__ पौर्वापर्याविरुद्धं वचनमनुपम निष्कलंक यदीयम् ।"
तं वन्दे साधुवन्धं सकलगुणनिधि ध्वस्तदोषद्विपंतबुद्धं वा वर्द्धमानं शतदलनिलयं केशवं वा शिवं वा ।।
-श्रीअकलकहि ।
भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध
समयका भारत । भारतवर्ष वही है जो पहले था। इसके नाममें, इसके रू इसके वेषमें, इसके शरीरमे-हा किसी तरफसे भी विरुद्धता नहीं आती। वही पृथ्वी है, वही नीलाकाश है, वही कलकल रखकारिणी सरितायें हैं, वही निश्चल निस्तब्ध गंभीर पर्वत है। सचमुच सबकुछ वही वही दृष्टि आता है । जो जैसा था वैसा दृष्टिगत होरहा है-कही मी अन्तर दिखाई नहीं पड़ता है । मनुष्य वही आर्य है-आर्यखडके अधिवासी प्रतीत होते हैं । यद्यपि इनके