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________________ - और म० बुद्ध ] [ २४३ हम ऊपर सीहके सम्बन्धमें देख चुके हैं कि जैनमुनि अथवा जैनी चौद्धग्रंथों में क्रियावादी के रूपसे परिचित हैं । अतएव यहांपर जो तित्थिय साधु क्रियावादका पक्ष ले रहे हैं और मेंडक गृहस्थको बुद्धके पास जाने में अलाभ बतला रहे हैं, वे अवश्य ही जैन साधु हैं । तथापि इनका उल्लेख निगन्धों के नामसे न किया जाकर जो “तित्थिय' के नामसे किया जा रहा है, इसका वही कारण है कि ये भगवान महावीरकी शिष्यपरंपरासे पहलेके जैन मुनि थे । इसके साथ ही अन्य समणोंका उल्लेख भी जो कहीं मुश्किलसे एकाध जगह इसी ' तित्थिय ' शब्द द्वारा किया गया है, उसका कारण यही है, जैसे कि हम मूल पुस्तकके प्रथम परिच्छेद में बतला चुके हैं कि वे सब भगवान पार्श्वनाथके दिव्योपदेशके उपरान्त उनके 'तीर्थ' मेंसे उत्पन्न हुये थे । इसी कारण उन समणलोगोंके सिद्धान्त भी जैनधर्म से सादृश्य रखते हैं अथवा उसके सिद्धान्तोके विक्रतरूप ही हैं । अतएव ' महावग्ग' में जो तित्थिय - साधु ' हैं उनको प्राचीन जैनसाधु समझना ठीक है । 'चुल्लवग्ग' में भी 'तित्थिय' साधुका उल्लेख एक स्थलपर निम्नरूपमें आया है: "Now at that time the Bhikkhus went on their round for alms, carrying water-jugs made -out of gourds or water pots. People murmured, were shocked, and indignant saying, As the Titthiyas do' V, 10, 1." 6 इसमें बौद्धसाधुओंके बारेमें कहा गया है कि वे आहार १. Ibid. P. 88. ا
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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