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________________ २३८ ] [ भगवान महावीर - ही आहार ग्रहण करते थे, जैसी कि दिगंबर जैन सम्प्रदायकी -मान्यता है । श्वेताम्बरोंके 'उत्तराध्ययन सूत्रमें ' जो भगवान पार्श्वनाथकी शिष्यपरंपरा के मुनियोंका मेल भगवान महावीरभीके संघसे हुआ बतलाया गया है, वह कुछ उचित नहीं जंचता है । यहां श्वेताम्बराचार्य प्राचीन मुनियोंको वस्त्रधारी बतलाते हैं और उनके व्रत चार ही प्रगट करते हैं । ब्रह्मचर्य का समावेश प्रथम व्रतमें किया हुआ बतलाया गया है । किन्तु यह बात हमारे उपरोक्त बौद्ध उद्धरणके विवेचनसे बाधित है और वह स्वयं श्वेतांवरशास्त्रोंके अन्य कथनोंकी समानतामें उचित नही जंचती है । हम पहले ही देख चुके हैं कि श्वे ० के आचाराङ्गसूत्र में सर्वोत्कृष्ट साधु अवस्था नग्न बतलाई गई है और तीर्थङ्करपद सर्वोच्च पद है, अतएव सर्वोच्चपद पर आसीन तीर्थकर भगवान ही जब सर्वोत्कृष्ट नियमका पालन नहीं करेंगे तब फिर और- कौन करेगा ? फिर जरा यह भी सोचनेकी बात है कि जब विशेष पुण्यमई अवसर अर्थात् कर्मयुग प्रारंभ में स्वयं ऋषभदेवने अब नग्नताको मोक्ष प्राप्तिमें आवश्यक माना था और उसी रूपको धारण किया था, जैसे कि श्वेतांवरशास्त्र प्रकट करते हैं, तो नफर उपरांतके पुण्यहीन कालमें इसकी आवश्यक्ता क्यों घट गई ? और फिर भगवान महावीरने उसका प्रतिपादन पुनः क्यों किया ? यदि मान लिया जाय कि बीचके मुनि वस्त्र धारण करते थे तो 8 - - १. जैन सूत्र (S. BE ) भाग २ पृष्ठ १२१. २. जैन-सू० भाग २ पृष्ट ५०-५५. ३. जैनसूत्र ( S. B. R ) भाग १ पुष्ठ ૨૬-૨૮૪
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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