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________________ -और म० बुद्ध ] [२३७ - इन उद्धरणोमें भिक्षुओद्वारा उन लोगोंको अपने मतमें दीक्षित करनेका उल्लेख है जिनके पास न भिक्षापात्र था और न वस्त्र थे । उन्होंने नग्नदशामें ही जाकर अपने हाथोमें भोजन गृहण किया। इसपर, वौद्धाचार्य कहता है कि लोगोंने उनका अपवाद किया और कहा 'यह तो तित्थियोंकी तरह करते है ।' अब यह स्पष्ट ही है कि जैनमुनि आहार हाथकी अंजुलिमें लेते है और वे नग्न रहते है । न उनके पास भिक्षापात्र होता है और न वस्त्र होते है । इस अवस्थामे यहां जो यह क्रिया तित्थियोंकी बतलाई है, तो यह तित्थिय जैनमुनि होना चाहिये। ___ - इसके साथ ही यह भी दृष्टव्य है कि यह उस समयका वर्णन है जब म० बुद्धने अपने 'मध्यमार्ग' का प्रचार प्रारम्भ ही किया था और वे अपनी सम्प्रदायके आचार, नियम आदि नियत करते जारहे थे । इस समय भगवान महावीर छद्मस्थ थे और उन्होने अपने धर्मका प्रचार करना प्रारंभ नहीं किया था, यह बात हम अपनी मूल पुस्तकमें पहले देख चुके हैं। इस कारण यह स्पष्ट है कि ये जैनमुनि, जिनका उल्लेख तित्थियरूपमें किया । गया है भगवान महावीरके संघके मुनियोंसे पहलेके जैनमुनि हैं, अर्थात् पार्श्वनाथनीकी शिष्यपरंपराके मुनि हैं। उनका उल्लेख 'तित्थिय' रूपमें करना ही उनको भगवान महावीरसे पहलेका प्रमाणित करता है । अतएव इस उद्धरणसे यह स्पष्ट है कि भगवान पार्श्वनाथकी शिप्यपरंपराके मुनि भी नग्न रहते थे और हाथोंमें १. अन्यत्र बौद्ध उद्धरणसे यह वात प्रमाणित है (पृष्ठ १८) तिसपर मूलाचार (पृष्ठ १ और २४४) दृष्टव्य है । २. पृष्ट. '
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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