SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३४] [भगवान महावीरनामोल्लेखके और कुछ विवरण नहीं दिया है इस लिए यह स्पष्ट नहीं है कि यह सीह अथवा सिंह कौन थे ? और. क्या वस्तुतः वह बौद्धधर्मानुयायी होगये थे ? इसको जाननेके भी - साधन प्राप्त नहीं हैं । बौद्धशास्त्र कहते हैं कि वह अन्ततः बौद्ध होगए थे । जो हो, बौडग्रंथके उक्त विवरणसे यह प्रकट है कि बौद्धदर्शन उस समय भी अक्रियावादके रूपमें विख्यात् था, उसमें आत्माका अस्तित्व स्वीकार नहीं किया गया था और जैनदर्शन क्रियावाद माना जाता था, वह भी दृष्टव्य है । श्वे० के 'सूत्रकताङ्ग (१।१२।२१) में एक श्रमणके लिये यह आज्ञा है कि वह क्रियावादको भी प्रतिपादन कर सका है । तथापि उनके 'आचाराङ्ग सूत्र में ( १४) इसकी व्याख्या इसतरह की है। कि एक क्रियावादकी आत्मा, लोक, कर्म और कर्मफलमें विश्वास रखता है।' क्रियावादकी यह व्याख्या दिगम्बर सिद्धान्तके भी विरुद्ध नहीं है । इसतरह उस समय जो जैनी क्रियावादके रूपमें प्रख्यात् थे, वह ठीक ही है। __ अगाड़ी जो उक्त विवरणमें निगन्योंको वैशालीमें दौड़ते और बौद्धोंको लाञ्छन लगाते बताया गया है, वह जैनियोंके अहिंसा. सिद्धान्तको व्यक्त करता है । जैनदृष्टिसे बाजारमें विकते हुए डलीवत, मांसको-ग्रहण करना भी हिंसा है। इसी. भावको लेकरवे लोग बुद्धके इस कृत्यकी गणना दुष्कृत्यमें करते वैशालीमेंविचर रहे प्रतीत होते हैं । यहां सिद्धान्त भेद स्पष्ट है.। अन्तमें १. जनसत्र (S. B. B.XLV.). भूमिका- पृष्ठ १६1२.. रत्नकरण्ड (मा०-) पृष्ट ४१-४3-1-~~
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy