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________________ -मा -और म० वुद्ध] [२३५ वे कहते भी हैं कि हम अपने जीवन-रक्षाके लिये कभी भी जान बूझकर प्राणीबध नहीं करते हैं।' इन निगन्थोके इस कथनसे यह स्पष्ट है कि यह निगन्थ-सावक (जेनगृहस्थ) थे। सचमुच बौद्धग्रन्थोंमें कही यह शब्द जैनमुनिके लिये व्यवहृत हुआ मिलता है और कहीं जैन श्रावकोंके लिये । इसलिए इस शब्दके यथार्थ भावको ग्रहण करनेमें होशियारीसे काम लेना आवश्यक है । यहा यह विल्कुल ही संभव नहीं है कि शालीमें जों निगन्थ चौराहे २ पर दौड़ रहे थे वे जैन मुनि थे, क्योंकि जनमुनि रागद्वेषसे रहित होते हैं, यह बात स्वयं बौद्ध ग्रंथोंसे प्रमाणित है। इस दशामें वे जैनमुनि नहीं हो सक्ते । तिसपर उनका यह कहना 'हम अपने जीवन-रक्षाके लिए भी प्राणी वध जानबूझकर नहीं करते' इसमें कोई संशय नहीं छोड़ता कि यह निगन्य गृहस्थ जैनी थे, क्योंकि जैनमुनि अपने भोजनके लिए स्वयं प्रबन्ध नहीं करता। भोजनकी फिकर द्वारापेषण रूपमें गृहस्थलोग ही रखते हैं और वही उसके लिए भी प्राणी क्य नहीं करते. हैं, अतएव यहांपर 'निगन्थ' शब्दका भाव नैननावकोसे है । - इसके साथ ही इस विवरणसे यह भी स्पष्ट है कि उससमय भी नैनियोंकी संख्या वैशाली में अधिक थी। सीहका धर्मपरिवर्तन जैसा कि बौद्ध कहते हैं बुद्धके अंतिम समयमें हुआ था इस कारण बुद्धके वारम्वार वहापर धर्मप्रचार करनेपर भी नैनियोंकी संख्या कम नहीं हुई थी। तथापि म० बुद्ध सीहसे जो भविष्यमें १. मूाचार पृ० ३-११ २. दीघ० मा० १ पृ० १७९-६२.. ____३. मूलाचार १६८-१६९ । . . - -
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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