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[ भगवान महावीर
सेनापति सीहका हृदय बुद्धकी ओर आकर्षित हुआ था । एक रोज विशेष प्रख्यात् लिच्छवि एकत्रित हुये सन्थागार में बैठे थे कि वे आपस में बुद्ध, उनके धर्म और संघकी प्रशसा विविध रीतिसे करने . लगे । उस समय सीह भी उस सभामें बैठा हुआ था । यह सब सुनकर वह सोचने लगा कि ' सचमुच गौतम समण अवश्य ही अर्हत् बुद्ध होंगे, तब ही तो यहांपर यह एकत्रित हुये इतने लिच्छवि उनकी, उनके धर्म और संघकी प्रशंसा कर रहे है ।" इसके उप
रान्त सीहने निगन्थ नातपुत्तसे बुद्धके पास जानेकी आज्ञा मांगी; जिन्होने उनको ऐसा करने से मना किया और बुद्ध द्वारा प्रतिपादित धर्मकी कमलाइयां प्रकट करते वे बोले कि 'सीह ! तृ कर्मोंके फल अर्थात् क्रियावादमें विश्वास रखता है, इसलिये समण गौतमके पास जाकर क्या करेगा ? जो कर्मोंके फलमें विश्वास नहीं रखता है, • अक्रियावादका प्रतिपादन करता है और इसी धर्मकी शिक्षा वह अपने शिष्योंको देता है ।" इसपर सीहकी उत्कण्ठा समण गौतमके पास जानेको कुछ दिनोंके लिये दूर होगई किन्तु पूर्वोक्त प्रकार अन्य लिच्छवियोंके मुखसे बुद्धका बखान सुनकर अन्तत वह म० बुद्धके निकट पहुंच ही गये, जिन्होंने एक लम्बा चौड़ा उपदेश उनको किया । इस उपदेशको सुनकर बौद्ध कहते हैं कि सीह बौद्ध होगया । बौद्ध होजानेपर सीहने बुद्ध और वौद्धभिक्षुओं को अपने यहां आमंत्रित किया और बाजार से मांस लाकर उनके लिये भोजन बनवाया । इसपर महावग्गमें लिखा है कि जैनियोने प्रवाद उठाया और 'एक बड़ी संख्यामें वे ( निर्ग्रन्थ लोग ) वैशालीमें, सड़कर और चौराहे चौराहे पर यह शोर मचाते दौड़ते फिरे कि आज
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