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[ भगवान महावीरअलग २ उल्लेख उपरोक्त बौद्ध सुत्तमें किया गया है। भगवान महावीरके संघमें भी ऐसे ही मुनिनन थे । उनकी संख्या इसप्रकार थी। ९९०० साधारण मुनिः ३०० अंगपूर्वधारी मुनिः १३०० अवधिज्ञानधारी मुनि; ९०० ऋद्धिविक्रियायुक्त; ५०० चार ज्ञानके धारी; १००० केवलज्ञानी; ९०० अनुत्तरवादी, सब मिलकर १४००० मुनि थे। इसप्रकार उक्त बौद्ध उद्धरणसे जैन शास्त्रोंकी प्रमाणिकता और उसकी प्राचीनता प्रकट है।
उपरान्त इस ब्रह्मनालसुत्तमें संजयवैरत्थीपुत्तके विक्रत स्याहाद सिद्धांतका विवेचन है, जिसके विषयमें हम पहिले मूल पुस्तकमें ही विचार प्रकटकर चुके हैं। इसके पश्चात् 'समन्नफलसुत्त' है।
इसमें मुनि अवस्थाके लाभका दिग्दर्शन कराया गया है। मगध सम्राट् अजातशत्रु साधारण आजीविकोपार्जनके उपायोंका लाभ बतलाकर पूंछते हैं कि घर छोड़कर साधुभेष धारण करनेसे फायदा क्या है ? इसके उत्तरमें साधु अवस्थाके लाभोको गिनाया गया है । इसीमें अजातशत्रु उन उत्तरोको भी बतलाता है जो उसके प्रश्नके जवाबमे अन्य मतप्रवर्तकोने दिये थे। भगवान महावीरके सम्बन्धमे कहा गया है कि जब अजातशत्रुने साधु जीवनके लाभके बारेमें उनसे पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि "हे राजन् ! एक निगन्थ चार प्रकारसे सवरित हैं। वह सर्व प्रकारके जलसे विलग रहकर जीवन व्यतीत करते हैं; सब पापसे दूर रहते हैं; सब पापको उनने धो डाला है और वह पाप-वासनाको रोककर पूर्ण हुये जीवन व्यतीत करते है । इस तरहका यह चतुर्यामसंवर है.
१. हमारा भगवान महावीर' पृष्ठ ११८.