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________________ २२० ] [ भगवान महावीर - यहां बौद्धाचार्यने स्पष्ट रीतिसे उस धर्मका नामोल्लेख नहीं किया है जिसके सम्बंध में वह यह वर्णन कर रहा है, किन्तु जो वर्णन उन्होंने जीव और लोककी नित्यतामें दिया है, वह ठीक जैनधर्मके अनुसार है । अपनी मूल पुस्तकेंमें हम पंहिले ही जैनियोंकी इस मान्यताका दिग्दर्शन कर चुके हैं।' जैन पुराणों में इसी तरहसे पूर्वभव स्मरण और जातिस्मरण के उल्लेख हमको मिलते हैं। तथापि विशेष ज्ञानधारी मुनिजन व्यक्तियोंके पूर्वभवोंका वर्णन करते मिलते हैं । इसके लिए जैनियोके 'महापुराण' 'उत्तरपुराण' आदि ग्रंथ देखना चाहिये । उक्त विवरणमें बौद्धाचार्यने अंगाडी जैनियोंकी इस मान्यताको निस्सार बतलाया है, किन्तु उस समय वह उनकी 'निश्चय' और 'व्यवहार' नयोंको भूल गया । 'निश्वनय' की अपेक्षा जीव और लोक नित्य है, परन्तु 'व्यवहार नय' की दृष्टिसे वे दोनों अनित्य भी हैं । इस कारण जैनियोका यह सिद्धान्त बाधित भी नहीं है । फिर यह भी ध्यान में रखनेकी बात है 1 कि यहां म० बुद्ध उन मतमतांतरोंके सिद्धांतोंकी आलोचना कर रहे हैं, जो उनसे पहिलेके चले आरहे थे । इस अपेक्षा उक्त प्रकार जैन सिद्धांतका उल्लेख इस आलोचनामें होना जैनधर्मकी प्राचीनताका द्योतक है । इससे यह भी स्पष्ट है कि भगवान पार्श्वनाथके तीर्थ में भी यह सिद्धांत उसी रूप में प्रचलित था जैसे कि आज जैन शास्त्रोमें मिलता है । तथापि इसके साथ ही जैन शास्त्रोंक वर्णनकी सत्यता और आर्षता प्रकट है । इस सुत्तकी चौथी आलोचना तक इस ही सिद्धांत का प्रति १. मूळ पुस्तक पृष्ठ
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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