________________
-भार म० बुद्ध ]
[२१९
हैं । वह उसी तरह स्थिर हैं जिस तरह पर्वतकी शिखर अथवा 'एक स्थम्भ हैं। यह भी आत्मा और लोकके मूल स्वभावको लक्ष्य करके ठीक ही है । जैन दर्शनमें यह इसी तरह स्वीकृत है, जैसे कि हम अन्यत्र पहले मूल पुस्तकमें देख चुके हैं।
अगाड़ी डायोलॉग्स ऑफ बुद्धमें जो जैन उल्लेख हमें प्राप्त हुये वे इसप्रकार हैं। पहले ही 'ब्रह्मनालसुत्त' में जहां नित्यवादियों ( Eternalists)का वर्णन है, वह सचमुच जैनियोके प्रति कहा गया प्रतीत होता है । कहा गया है कि "भिक्षुओ, पहिले ही एक ऐसे ब्राह्मण अथवा समण हैं जो प्रयत्न और तीक्ष्ण विचार आदि द्वारा हृदय आल्हादकी उस अवस्थामें पहुंचते हैं जिसमें वह हृदयमें लीन हो जाकर अपने मन द्वारा पूर्वभवोंका एक, दो, तीन, चार, पांच, दस, वीस, तीस, चालीस, पचास, सौ, हजार, बल्कि लाख पूर्वभवोका स्मरण करते हैं । उस स्मरणमें जानते हैं कि 'तक मेरा यह नाम था....और मैं इतने वर्ष जीवित रहा था। वहांसे मृत्यु होनेपर मेरा जन्म यहां हुआ है। इस तरह वह पूर्वस्मरण अपने पहलेके घर.आदिके रूपमें कर लेता है और फिर वह विचारता है कि "जीव नित्य है। लोक किसी नवीन पदार्थको जन्म नहीं देता है । वह पर्वतकी भांति स्थिर है स्थम्भकी तरह नियत हैं और यद्यपि यह जीवित प्राणी संसारमें परिभ्रमण करते हैं और मरणको प्राप्त होते है, एक भवका अन्त करके दूसरे में जन्मते हैं, तो भी वे हमेशाके हमेशा वैसे ही रहते हैं । इत्यादि।"
सु० वि० (P. T. S) पृष्ठ ११९ २ पृष्ठ. ३-Dialognes -of the Buddha.S B. B. Series,