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[ भगवान महावीरP. T.S. IV. 398 )। इससे भी भगवानकी सर्वज्ञता प्रमाणित है। उसमें यह भी लिखा है कि ज्ञात्रिक क्षत्री एक भिक्षु, चातुर्याम संवरसे सुरक्षित, देखी और सुनी बातोको बतानेवाले और जनता द्वारा बहु मान्य थे ।* इतनेपर भी इसमें भ० महावीरको म. बुद्धके तुल्य नहीं बतलानेx में पक्षपातसे काम लिया है। अगाडी इस निकायमें लिखा है कि जिस समय निगन्थ नातपुत्त महावीर संघसहित मच्छिकाखण्डमें ठहरे हुए थे, उससमय गृहपति चित्तो नामक जमीन्दार उनके निकट आया और उनको नमस्कार की । भगवानने उससे कहा कि 'क्या तुझे विश्वास है कि श्रमण गौतम (बुद्ध) का ध्यान अवितर्क और अविचार श्रेणिका है और उनने वितर्क और विचारको नष्ट कर दिया है ? गृहपति चित्तो बोला कि उसे इसमें विश्वास है। इसी कारण वह बुद्धके पास नहीं गया है । यह सुनकर निगन्थ नातपुत्तने अपने शिष्योसे कहा कि देखो शिष्यो । गृहपति चित्तो कितना सरल और सलज्ज है। तब चित्तोने नातपुत्तसे पूछा कि 'श्रद्धा और ज्ञानमे कौन मुख्य है ?' नातपुत्तने-कहा कि 'ज्ञान मुख्य है।' इसपर चित्तो बोला कि 'मुझे चारो ज्ञान प्राप्त करनेकी इच्छा है।' यह सुनकर निगन्थ नातपुत्त अपने शिष्योसे- बोले कि- 'देखो, चित्तो गृहपति कैसा शठ और मायावी है ?' तदुपरान्त चित्तोको महावीरकी शिक्षाका जो महत्व था वह मालूम होगया और वह कुछ और प्रश्नोत्तर करके चला गया । (सं० नि• P. T.S भाग ४४० २८७)। ___ * दी बुक ओफ दी किन्डर्ड सेयन्स भा० १ पृ. ९१. x सं. नि. P. T. S. भा० १ पृ० १९.