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-और म० बुद्ध
[ २१५ है। इस अवस्थामे सम्राट अशोकके राजत्व कालमें एकत्रित और मानित हुये उपरोक्त बौद्धसुत्तोंमें इसप्रकार जैन मुनियो-आचार्योका परस्पर झगड़नेका उल्लेख होना युक्तियुक्त ही है । उस उद्धरणमें श्वेतवस्त्रधारी जैन श्रावकोका भी उल्लेख है, जो जैन संघमे व्रती श्रावकके रूपमे होते ही हैं। इस तरह इस उल्लेखका खुलासा है।
इनके अतिरिक्त 'संयुत्तनिकाय' मे भी एक विषय उल्लेखनीय है। उसमें एक स्थलपर कहा गया है कि "भगवान महावीरने हिंसा, चोरी, झूठ, अब्रह्मचर्य और मादक वस्तु सेवनके त्यागका उपदेश दिया है तथा कहा है कि जितने समयतक किसी व्यक्तिने जीव वध किया हो, उस समयसे अधिकतक यदि वह दयाधर्मका अभ्यास करे और उसका समाधिमरण भी उस समयसे अधिक हो
तो वह व्यक्ति नर्कमे नहीं जायगा ।" इसमें बहुत कुछ अयथार्थ __ वर्णन किया गया प्रकट होता है । भगवान महावीरने जिन पांच
पापोका त्याग करनेका उपदेश दिया था, उनमें पांचवा मद्यपान त्याग न होकर परिग्रहपरिमाण व्रत था। मद्यपान त्यागका समावेश तो प्रथम व्रत हिंसा-त्यागमें होचुका है। वस्तुतः जिसप्रकार पांच बातोका त्याग यहां बताया गया है वह स्वयं बौद्धधर्ममें स्वीकृत हैं। तथापि इसके उपरान्त जो समाधिमरण आदिकी बात कही गई है, वह भी ठीक है । इसके अतिरिक्त 'संयुत्तनिकाय' में कहा गया है कि प्रख्यात् ज्ञात्रिक महावीर बतला सक्त थे कि उनके शिष्य कहाँ पन जन्मे थे और उनमेंसे मुख्य कहां उत्पन्न हुआ था। (S N.
१ संयुत्तनिकाय भाग ४ पृष्ट 31७. ३. हिस्टोरिकल ग्लीनिंग्स प्रष्ट ८०. 3. रलकरण्ट (मा० प्र.) पृष्ट ४३,
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