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________________ और म० बुद्ध ] [२१३ चेतियम् तम् नातिक्कमेय्यम् न ति ।' सो इमेसम् सत्तन्नम् वत्त-पदानम् समादान हेतु लाभग्ग प्पत्तो च एव यसग्ग पत्तो च वलिगामे ।" दीघनिकाय ( P. T. S.) भाग ३ पृष्ठ ९-१० । इसमें पहिले अचेलक होकर यावज्जीवम् ब्रह्मचर्य धारण सुरा मांस त्याग आदिकी प्रतिज्ञा की हुई बतलाई गई है। सम्भव है कि पहिले कन्डरमसुक अनैन साधु होगा अथवा भ्रष्ट मुनि होगा। इसलिए उपरांत उसने ऐसी प्रतिज्ञा की ! जो हो, इतना स्पष्ट है कि इसमें जो प्रतिज्ञायें की गई हैं वह जैन मुनिकी चर्या में मिलती हैं। अस्तु; 'दीघनिकाय' के 'पासादिक सुत्तन्त' और 'संगीत सुत्तन्त' में भी जैन उल्लेख हैं। उनसे भी यह स्पष्ट है कि भगवान महावीरका निर्वाण म० बुद्धके जीवनकालमें होगया था। पासादिक सुत्तन्त' में यह इसप्रकार है: "एकम् समयम् भगवा सक्केसु विहरति । (वेधज्जा नाम सेकया, तेसम् अम्बवने पासादे), तेन खोपन समयेन निगन्ठो नाथपुत्तो पावायम् अधुना कालकतो होति । तस्स कालकिरियाय भिन्ना निगन्ठं द्वेधिक जाता, भण्डन जाता, कलह जाता, विवादापन्ना अंजमंजम् मुख सत्तीहि वितूदन्ता विहरन्ति 'न त्वं इमं धम्म विनय आजानासि ? अहं इमं धम्म-विनयं आजानामि, किं त्वं इम धम्म विनयं आजानिस्ससि !' मिच्छा पटिपन्नो त्वं असि, अहं अस्मि सम्मा पंटिपन्नो, सहितम् मे, असहितन् ते, पुरे वचनीय पच्छा अवच, पच्छा बचनीय पुरे अवच, अविचिण्णन ते विपरावत्तं आरोपितो ते बादो, निग्गहीतो सि चर वादप्पमोक्खाय, निब्बेठेहि वा सचे यहोसीति ।' वधो एव खो मंजे निगन्ठेसु नाथपुत्तिनेसु वत्तति । ये
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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