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[ भगवान महावारभावार्थ-यह सबके नेता हैं, गणाचार्य हैं, दर्शन विशेषके. प्रणेता है, विशेष विख्यात् हैं, तीर्थकर हैं, मनुष्यो द्वारा पूज्य हैं, अनुभवशील हैं, बहुत कालसे साधु अवस्थाका पालन कर रहे हैं, और अधिक वय प्राप्त हैं ।' यह वर्णन प्रायः ठीक ही है । इसके अतिरिक्त अन्यत्र इसी निकायमें एक 'पाटिकसुत्त' नामक सुत्तन्तुमे जैन विवरण है।' उससे प्रकट है कि म० बुद्धके जीवनमे ही भगवान् महावीरका निर्वाण होचुका था।
इसी सुत्तन्तमें एक कन्डर मसुक नामक मुनिका उल्लेख है। इन्होने नो नियमित दिशाओं में जानेकी प्रतिज्ञा की थी, उससे प्रतिभाषित होता है कि वह जैन मुनि थे। जैन मुनि ऐसे नियमका पालन करते हैं, यद्यपि बौद्ध कहते हैं कि लिच्छवियोको खुश करनेके लिये उन्होने यह प्रतिज्ञा ली थी। मूल इसप्रकार दिया हुआ है।
"एकम इदाहम् भग्गव समयम् वेसालियम् बिहरामि महावने कूटागार-सालायम् । तेन खो पन समयेन अचेलो कन्डरममुको वेसालियम् पटिवसति लाभग्ग-प्पत्तोच एव यसग्ग, प्रत्तोच वज्जि गामे। तस्स सत्तवत्त-पदानि समत्तानि समादिन्नानि होन्ति-'यावनीवम् अचेलको अस्सम् , न वत्थम् परिदहेय्यम् : यावजीवम् ब्रह्मचारी अस्सम् न मेथुनम् पटिसेवेय्यम् यावनीवम सुरा-मांसेन एव यापेय्यम्, न ओदन कुम्मासम् भुजेय्यम् पुरस्थिमेन वेसालियम् उदेनम् नाम चेतियम् तम् नातिक्कमेय्यमः दक्खिणेन वेसालियन् गोतमकम् नाम चेतियम् तम् नातिकमेय्यम् पच्छिमेन वेसालियम् सतम्बम् नाम चेतियम् तम् नातिक्कमेव्यम् उत्तरेन वेसालियम् बहुपुत्तम् नाम
१. दी० नि० (P.T.S) भाग 1 पृष्ट १-३५