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________________ -और म० बुद्ध ] [२११ वकोंने इस अभिनाति सिद्धांतको प्रकट किया था तथा इसके द्वारा मनुण्य समानको छै अभिजातोंमें विभक्त किया था। हलिद अभिजातिमें आजीवक श्रावकोको रक्खा था, शुक्लमें आनीवक भिक्षु-भिक्षुणियोंको एवं आजीवक नेताओंको परमशुक्ल अभिजातिका बतलाया था । उपरोक्त उद्धरण इनके उपरांत आया है। अतएव इससे यहांपर भाव आजीविक सिद्धांतके मनुष्य विभागसे है । अंगुत्तरनिकायमें यह अभिजाति सिद्धांत भ्रमवश पूरणकस्सपका चतलाया गया है किन्तु वास्तवमें यह आनीवकोका है और उन्होंने अपने श्रावकोको हलिद अभिजातिमें रखकर निगन्थों (नैनो) के उत्कृष्ट श्रावकको लोहिताभिनातिमें रक्खा है। सचमुच यदि निगन्थ सप्रदाय उस समय ही स्थापित हुई होती तो उसका उल्लेख इसप्रकार होना कठिन था । इसतरह यह अंगुत्तरनिकायके उल्लेख हैं। दीघनिकाय' में भी कतिपय जैन उल्लेख हमारे देखनेमें आये हैं । एक स्थानपर उसमें उस समयके प्रख्यात मतपर्वतकोंका वर्णन करते हुये भगवान महावीरके सम्बंधमें भी राजा अजातशत्रुके मुखसे कहाया गया है कि: "अन्नतरो पि खो राजामच्चो राजानाम् मगधम् अनातसत्तम् वैदेही पुत्तम् एतद अबोचः 'अयम् देव निगन्ठो नातपुत्तो सघी चेव गणी च गणाचार्यों च ज्ञातो यसस्ती तित्थकरो साधु सम्मतो वह जनस्स रत्तस्सू चिर-पब्ब जितो अडगतो वयो अनुप्पत्ता । २ १. भंगुत्तानिकाय भाग ३ पृष्ट ३८४. २. दीवनिकाय (P. T." S.) भाग १ पृष्ट ४८-४४.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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