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[ भगवान महावीरइसमें केवल भगवान महावीरजीकी सर्वज्ञताका ही निरूपण नहीं किया गया है, प्रत्युत उनके बताये हुये मार्गका भी दिग्दर्शन कराया गया है, जो प्रायः ठीक ही है। इस निकायमें भी लिच्छवि सेनापति सीहका कथानक दिया है जिसका पूर्ण दिग्दर्शन हम अगाडी करेंगे । यहां बौद्धाचार्य भगवान् महावीरको कर्म-फलमें विश्वास करनेवाले क्रियावादी बतलाते हैं । (अ० नि० भाग ४ ४० १८०)। इसमें भगवान महावीरजीको यह कहते भी चतलाया है कि "वह सर्व लोकको देखते हैं जो उनके परिमित ज्ञानसे सीमित है ।" वुद्ध उस मतका खंडन करते है ।* यहांपर भगवानके ज्ञानमें लोकालोक स्पष्ट दिखता था इस अपेक्षा उनके निकट लोक सीमित रूपमें स्वीकार किया बतलाया गया मालूम पड़ता है । इसी निकायमे अन्यत्र उदासीन निगन्थ (जैन) साधु (उत्कृष्ट श्रावक) एक वस्त्रधारीका भी उल्लेख है। यह इसप्रकार है:"लोहिताभिजातिनाम निगन्था एकसाटका तिवदति।।'
इसका अर्थ यही है कि रक्त प्रकार ( लोहिताभिनाति ) के . निगन्थ है, जो एक वस्त्रधारी नामसे भी विख्यात् है । दि. जैन शास्त्रोमें ये एक वस्त्रधारी गृहत्यागी 'क्षुल्लक' नामसे ज्ञात हैं, जैसे कि हम मूल पुस्तकमे देख चुके है । 'क्षुल्लक' पदसे ही 'निगन्ध-अचेलक' पद प्राप्त होता है । इसतरह बौद्धग्रन्थका यह कथन भी जेनमान्यता के अनुकूल है। परन्तु इसमें उनको 'लोहिताभिनाति' का क्सि अपेक्षासे बनलाया है, यह दृष्टव्य है। आनी
* अगुमर० भाग ४ पृ. ८२९. १. भंगुननिय भाग ३ पृष्ट ३८३. २. पृष्ट