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- और म० वुद्ध ]
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पृथ्वीके कण, उसमें नं गिरें, + यह स्पष्ट कर देता है कि बुद्धघोष उक्त उद्धरणमे जैन मुनि और उत्कृष्ट श्रावक ऐलकका भेद ही प्रगट कर रहे है | अस्तु ! *
अंगुत्तरनिकाय में अन्यत्र एक दूसरा उल्लेख है; उससे भी भगवानके सर्वज्ञ होनेकी पुष्टि होती है। लिखा है कि " जब आनंद (बुद्धके मुख्य शिष्य ) वैशाली में थे, तब अभयं नामक लिच्छवि राजकुमार और पंडितकुमार नामक लिच्छवि आनंन्दके पास आये । अभयने आनन्दसे कहा कि 'निर्ग्रन्थ नातपुत्त (भागवान महावीर ) सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं। वह ज्ञानके प्रकाशको जानते हैं (अर्थात् केवलज्ञानी हैं) । उन्होंने जाना है कि ध्यानद्वारा पूर्व कर्मो को नष्ट किया जासक्ता है । कर्मोके नष्ट होने से दुःखका 1 होना बन्द होजाता है | दुःख ( Suffering) के बन्द होजानेसे हमारी विषयवासना नष्ट होजाती है और विषयवासनाके क्षय होजानेसे संसारमे दुःखका अन्त होजाता है । " २
+ Dhammapadam, Fausboll, P. 398 * यद्यपि 'मुण्डक श्रावक' का अर्थ बुद्धघोषके अनुसार हमने क्षुल्लक - ऐलकसे टिया है, किन्तु डॅ ० वी० एम० वारुआ अपनी 'प्री-बुद्धिष्ट इन्डियन फिलासफी' नामक पुस्तक में 'मुण्ड-साधक' सप्रदायको 'मुण्डक उपनिषद्' के परिव्राजक बहलाते हैं । बुद्धघोषने इनका स्वतंत्र उल्लेख किया है. इसलिए इनका स्वाधीन परिवाजक होना बहुत संभव है। सम्पर्क निगन्धोंसे होगा । इसलिए उम्रने उनकी गणना १. यह अभय सम्राट् श्रेणिकके पुत्र अभयकुमारसे भिन्न है, ऐसा डॉ० जैकोचीने प्रकट किया है । ( जैनसूत्र भाग २ की भूमिका ) २. P. T. S. Vol. I. pp. 220-221.
किन्तु इनका कुछ
निगन्योंमें की है ।
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