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________________ २०८ ] [ भगवान महावीर जटिलक, (५) परिव्वाजक, (६) मागन्डिक, (७) तेडन्डिक, (८) अविरुद्धक, (९) गोतमक, (१०) और देवधौमनिक वह इनमें नं० २ और नं० ३ की व्याख्या करते हुये बुद्धघोषने निगन्थों को ग्रन्थियोंरहित और नातपुत्तके नेतृत्वका साधु संघ लिखा है तथा यह भी लिखा है कि वे एक लंगोटी धारण करते हैं । इसके साथ ही वुद्धघोषने मुण्ड सावकोकी गणना भी इन्हींमें की है। यहां बौद्धाचार्य, बुद्धघोष, ऐलक, क्षुल्लक और व्रती श्रावकों का उल्लेख कर रहे हैं; क्योकि यदि यहां निगन्यका भाव मुनिसे होता तो उन्हें लंगोटी धारण करनेवाला वह व्यक्त नहीं करते; जब कि अपनी अन्य रचनाओं (धम्मपदत्थकथा आदि) में जैन मुनि - योंको नग्न प्रकट कर रहे हैं । तिसपर बुद्धघोष प्रायः ईसाकी पांचवीं शताब्दि के विद्वान हैं, सो उनके समय श्वेतांबर भेद भी जैन सघमें होगया था और इस दशा में संभव भी है कि वह श्वेतांबर संप्रदायके वस्त्रधारी मुनियोंका उल्लेख करते होते; परन्तु वह भी ठीक नहीं बैठता, क्योकि श्वे ० साधु केवल लंगोटी धारण नहीं करते और फिर वह साथ ही लगोटीधारी निगन्थके साथ मुण्डसावक - निगन्थका भी उल्लेख कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि के प्राचीन जैन संघके ऐलक और व्रती श्रावकों का उल्लेख कर रहे हैं, जैसे कि दिगवर शास्त्र प्रकट करते हैं । उनका यह वक्तव्य कि ' श्रेष्ठ निगन्थ' ( Better Niganthas ) जो नग्न रहते थे, वे कहते है कि हम अपने कमण्डलको ढक लेते हैं कि कहीं जीवधारी Dialogues of the Buddha S. B B. Vol. II Intro to Kaesapa- Sihanada, Sutta.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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