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________________ [२०५ - और म० बुद्ध __ तुम अपने सब वस्त्र उतार डालो और कहो, न हम किसीके हैं, और न कोई हमारा है । परन्तु उसके माता पिता उसे अपना पुत्र जानते हैं और वह उन्हें अपने मातापिता जानता है । उसके पुत्र ___ या पत्नी उसे क्रमश अपना पिता या पति मानते हैं और वह भी उनको अपना पत्र अथवा पत्नी जानता है। उसके नौकर-चाकर उसे अपना मालिक मानते हैं और वह उन्हें अपने नौकर-चाकर जानता है इसलिये (निगन्थगण) उससे उस समय असत्य भाषण कराते हैं, जब वे उससे उपर्युक्त वाक्य कहलाते हैं । इस कारण मैं उनपर असत्य भाषणका आरोप करता हूं। उस रात्रिके उपरांत वह उन वस्तुओका उपभोग करता है जो उसे किसीने नहीं दी है, इस कारण मै उसपर उन वस्तुओंको ग्रहण करनेका लांछन लगाता हूं जो उसे नही दी गई है।" यहां बौद्धाचार्य जैन श्रावकके प्रोषधोपवासका उल्लेख कर रहे हैं किन्तु इसमें भी उन्होने उक्त प्रकार चित्र चित्रण किया है। जिस समय श्रावक प्रोषधोपवास कालके लिये उक्त प्रकार प्रतिज्ञा . करता है उस समय वह सांसारिक सम्बन्धोसे विल्कुल ममत्व हटा लेता है और उसकी वह प्रतिज्ञा उसी नियत कालके लिये थी. इस कारण उसपर असत्य भाषण और अदत्त वस्तुओको ग्रहण करनेका आरोप युक्तियुक्त नहीं है किन्तु चौद्ध ग्रन्थके उक्त वर्णनसे यह प्रतिभाषित होता है कि प्रोषधके दिन श्रावककी चर्या विल्कुल मनिवत होजाती है, उसे सब वस्त्र उतारकर मोहको हटानेवाली उक्त प्रकारकी प्रतिज्ञा करते बताई गई है। परन्तु जेन शास्त्रोंमें १. अंगुतरनिकाय ३-७०-3. और जनसूत्र भाग २ भूमिका ।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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