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[ भगवान महावीरइसका विरोध करते हैं, वह कहते हैं, "नहीं गौतम, सुखसे सुखकी प्राप्ति नहीं होती, किन्तु कष्ट सहन करनेसे होती है ।" ( Nay friend, Gotana, bappiness is not to be got at by happiness, but by suffering ). * HET HN तपश्चरणको मुख्यता देनेका है। जिसको म० बुद्ध स्वीकार नहीं करते । जैन धर्ममे परमसुख प्राप्त करनेके लिए तपश्चरण भी मुख्य माना गया है । यही मत उस समयके मुनिमहाराज प्रकट कररहे हैं, सो ठीक है । तपश्चरण स्वयं सुखरूप है, इसलिए वह सुखमई मार्ग है। बुद्ध उसको कष्टमय समझते हैं यह उनका भ्रम है । अन्ततः मज्झिमनिकायमे जैन उल्लेख 'सामगामसुत' में और देखनेको मिला है और वह इस तरह है:
"एकम् समयम् भगवा सक्केसु विहरति सामगामे, तेन खो, पन समयेन निग्गन्थो नातपुत्तो पावायम् अधुना कालकत्तो होति । तस्स कालकिरियाय भिन्ननिग्गन्थ वधिकनाता, भन्डनजाता, कलहजाता विवादापन्ना उण्णमण्णम् मुखसत्तीहि वितुदन्ता विहरिन्ता।""
इससे स्पष्ट है कि म० बुद्ध जिस समय सामगामको जारहे थे उस समय उन्होंने निग्रंथ नातपुत्त (भगवान महावीर ) क निर्वाण पावामें होते देखा था। उपरान्त कहा गया है कि भगवान महावीरके निर्वाणलाम करनेके वाद निर्मथ संघमें मतभेद और कलह खड़े हो गये थे जिसके कारण वे दो विभागोंमें विभाजित हो विहार करने लगे। इससे यह समझना ठीक प्रतीत नहीं होता कि भगवानके निर्वाणलाभके साथ ही यह दशा उपस्थित हो गई थी.
* म. नि. भाग १ पृ. १३ । १. मज्झिमनिकाय भाग २ पृ० १४३ ।