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- और म० बुद्ध ]
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करनेके लिए निमंत्रित किया । बुद्धने यह आमंत्रण स्वीकार कर लिया । लिच्छवियोंको भी इस आमंत्रणकी खबर पड़ी और उनसे कहा गया कि जो वस्तु वे देना चाहें खुशीसे ले आयें । प्रातः ही लिच्छवि बुद्धके लिये पांचसौ थालियां भोजनकी लाये । सच्चक और लिच्छवियोंने भक्तिभावसे बुद्धको आहार दिया । इस तरह यह कथानक है । सच्चक एक जैनीका पुत्र है परन्तु वह स्वय जैन नहीं है यह इसी ग्रन्थ अन्यत्र के एक उल्लेखसे प्रमाणित है । 'जैन ग्रन्थोंमें इसके विषयमें कोई चर्चा नहीं है । यद्यपि यह स्पष्ट है कि. इस कथानकसे जैनधर्मका अस्तित्व बौद्धधर्मसे पहिलेका प्रमाणित होता है जैसा कि डॉ० जैकोबीने प्रकट किया है। सचमुच जब वह बादी जिसका पिता जैन था, म० बुद्धका समकालीन है, तो यह कदापि सम्भव नहीं है कि जैनधर्मकी स्थापना म० वुद्धके जीवन में हुई हो, जैसे कि हम अपनी मूल पुस्तकमें भी देख चुके हैं । तथापि सञ्चकका यह कथन कुछ तथ्य नहीं रखता कि उसने महावीरस्वासीको वाद में परास्त किया हो, क्योंकि वह स्वय म० वुद्धसे वादमें पराजित हुआ है, जिनका ज्ञान भगवान महावीरके ज्ञानसे हेय प्रकारका था । इस दशामें वह भगवानसे वाद करनेका घमंड नहीं कर सक्ता। यहां भी जैन तीर्थंकर के महत्वको हेय प्रकट करनेके लिये चौद्धोंका यह प्रयत्न है ।
अन्यत्र मज्झिमनिकाय में म० वुद्ध यह भी मत निर्दिष्ट करते हैं कि सुखसे ही सुखकी प्राप्ति होती है । इसपर वहां जैन मुनि
१. पूर्व पृ० २०० । २. जैन सूत्र (S. B. E.) भाग २ भूमिका पृ० २३ । ४. देखो मूळ पुस्तक पृ०
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