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________________ -टा -और म० बुद्ध] [ १९९. पूर्ण समझते हैं। इस तरह पर यह वार्तालाप पूर्ण हुआ। दीघतपस्सी अपने स्थानपर लौट आये | इसमें तीन डन्डोंका कथन है वह प्राय. जैनधर्मके अनुसार ही है। जैनधर्ममें भी यह तीनों डन्ड इसी तरह स्वीकार किये हुये आज भी मिलते हैं । केवल क्रमका अन्तर है, बौड कायडण्डको पहिले गिनाते हैं, जबकि मनडन्ड गिनाना चाहिये । उनके इसी मज्झिमनिकायके पूर्व कथनसे यह वात प्रमाणित है । वहांपर भगवान महावीरको मन-कम्म (डन्ड) और काय-कम्म (डन्ड) पर बराबर जोर देते लिखा है ।* अस्तु, मज्झिमनिकायमें भगवान् महावीरके विशेषणोंमें यह भी बतलाया है कि वे जानते थे कि किसने किस प्रकारका कर्म किया है और किसने नही किया है। (MN PTS. Vol. II. Pt II. pp. 224-228.)x इससे भी भगवानकी सर्वज्ञताकी सिद्धि होती है। इन सर्वज्ञ भगवान द्वारा ही अंग और मगध देशोंमें पहलेसे प्रचलित सिद्धांतवादको नवजीवन प्राप्त हुआ था, यह बात इसी बौद्ध ग्रन्थसे प्रमाणित है। (म०नि० भाग २ ८० २)। 'मज्झिमनिकाय' में अन्यत्र निगन्थपुत्त सञ्चक और बुद्धका कथानक है। कहा गया है कि जिस समय बुद्ध वैशालीमें थे, पांचसौ लिच्छवि कार्यवश सन्थागारमें एकत्रित हुये। इसी स्थानपर निगन्थपुत्त सच्चक पहुंचा और यह लिच्छवियोंसे बोला:-"आज लिच्छवियोंको आना चाहिये; मैं समन गौतमसे बाद करूंगा। यदि १. पूर्ववत. । पूर्व भाग १ पृ. २३८ x दी समक्षत्री कैन्स ऑफ एन्शियेन्ट इडिया पृ० ११८ । २. मज्झिमनिकाय (P.T.S.) भाग ! पृ० २२५-२२६ । .
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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