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________________ १९४] [ भगवान महावीरजमानेमें आकर बौद्ध साहित्यके संकलित होनेपर निर्दिष्ट हुये थे!इस अपेक्षा बौद्धोंका उक्त कथन ठीक नहीं जंचता । उपरान्त इसी निकायके 'चूल सकुलदायी सुत्त' मैं भगवान् महावीर द्वारा बताए गये पंचव्रतोका यथार्थ उल्लेख है। वहां भी इनको अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह बतलाया है तथा इन्हें आत्माकी सुखमय दशाको प्राप्त करनेका कारण जतलाया है। यह चूल सकलोदायी जैन मुनि थे तथापि इसमें अन्यत्र 'उपालीसुत्त' द्वारा अहिंसा सिद्धान्तका प्रभेद प्रकट किया है। उपाली एक जैन श्रावक था। वह म० बुद्धके पास गया था। उसने वहां यह प्रकट किया था कि हिंसा चाहे जानबूझकर की गई हो या विना जानेबुझे, परन्तु वह पापचंधका कारण अवश्य है । यह जैन दृष्टिसे अहिसाकी परमोच्च व्याख्या है। विना जाने भी जो हिसा होगी उसका पापवध अवश्य भुगतना पडेगा, यद्यपि श्रावकोंके लिये अहिंसाकी मान्यता अन्य प्रकारकी है। वह सिर्फ उसका पालन एकदेशरूपमें करते हैं, केवल जानबूझकर किसीको मारने अथवा पीडा पहुंचानेका ही उनके त्याग होता है, अन्यथा वे आरम्भी और उद्योगी हिंसाके भागी होते ही हैं। अपनी रक्षाके लिये और धर्म-मर्यादाको स्थिर करनेके लिये वे लडाइयां भी लड़ते हैं परन्तु एक मुनि डम अहिसाका पालन पूर्ण रीतिमें करता है। वह अपने शरीर-पोषगके लिये भी हिसा नहीं करता है। जो कुछ श्रावकोने अपने लिये भोजन बनाया होगा उसीमेंसे अल्प मात्रामें १ मज्झिमनिकाय भाग २ पृष्ठ ३५-१६ । २. म. नि. भाग १ पृष्ठ ३७१ । ३. रत्नारण्डश्रावकाचार (मा० प्र०) पृष्ठ ४३ ।
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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