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________________ -और म. बुद्ध] [ १८९ है और उनमें जैनधर्म सम्बन्धी उल्लेख जो हमें मिले हैं उनको हम विवेचन सहित निम्नप्रकार पाठकोंके समक्ष उपस्थित करते हैं। 'सुत्तपिटक' का द्वितीय अंग 'मज्झिमनिकाय' है। इसमें जो जैन उल्लेख आये हैं, उनमें से कतिपय इस प्रकार है । एक स्थानपर बुद्ध कहते हैं: 'एक मिदा हं, महानाम, समयं राजगहे विहरामि गिझकूटे पब्बते । तेन खो पन समयेन संबहुला निगण्ठा इसिगिलिपस्से काल सिलायं उन्मत्थका होन्ति आसन पटिक्खित्ता, ओपक्कमिका दुक्खा तिप्पा कटुका वेदना वेदयन्ति । अथ खोह, महानाम, सायण्ह समयं पटिसल्लाणा बुद्वितो येन इसिगिलि पस्सम कालसिला येनते निगण्ठा तेन उपसंकमिम् । उपसंकमित्त्वा ते निगण्ठे एतदवोचम्: किन्नु तुम्हे आधुसो निगण्ठा उन्भट्टका आसन पटिक्खित्ता, ओपकीमका दुक्खा तिप्पा कटुका वेदना वेदियथाति । एवं वुत्ते, महानाम, ते निगण्ठा में एतदवोचु, निगण्ठो, आबुसो नाथपुत्तो सबजु, सब्बदस्सावी अपरिसेस ज्ञाण दस्सनं परिजानातिः चरतो चमे तिट्ठतो च सुत्तस्स च जागरस्स च सततं समितं ज्ञाण दस्सनं पच्चुपट्टिततिः, सो एवं आहः अस्थि खो वो निगण्ठा पूब्वे पापं. कम्मं कतं, तं इपाय कटुकाय दुकरिकारिकाय निजरेथ; यं पनेत्त्य एतरहि कायेन संयुता, बाचाय संयुता, मनसा संवुता तं आयर्ति पापस्स कम्मरस अकरणं, इति पुराणानं कम्मानं तपसा व्यन्तिभावा, नवानं कम्मानं अकरणां आयति अनवस्सवो, आयति अनवस्सवा कम्मक्खयो, कम्मक्खया दुक्खक्खयो, दुक्खक्खया वेदनाक्खयो, वेदनाक्खया सब्बं दुक्खं निजिण्णं भविंस्सति तं च पन् अम्हाक
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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