________________
१८८]
[भगवान महावार
परिशिष्ट। चौद्ध साहित्यमें जैन उल्लेख । __ भारतीय साहित्यमें उपलब्ध बौद्ध साहित्य भी विशेष प्राचीन है। बौद्धधर्मके प्रख्यात् विद्वान् प्रा. हीसडेविड्स अन्य विद्वानोंके साथ यह सिद्धकर चुके हैं कि बौ डोके पालीग्रन्थोंकी रचना आजसे करीब २२०० वर्ष पहिले होचुकी थी। अशोकके समय अर्थात् ईसवी सनसे पूर्व तीसरी शताब्दिमें इन ग्रन्थोंका अधिकांश भाग प्रायः उसी रूपमें स्थिर होचुका था जैसा उसे हम आज पाते हैं।' तथापि मिसिन हिसडेविड्सका कथन है कि यह ग्रन्थ ईसवीसन्से पूर्व ८० वर्षमें लिपिवद्ध होचुके थे। ऐसी दशामें इन बौद्ध ग्रन्थोंमें जैनधर्मके सम्बन्धमें जो उल्लेख है वे विशेष महत्त्वके हैं। क्योंकि उनके कथन भगवान महावीरके बहुत निकटवर्तीकालके हैं। ___ हमें बतलाया गया है कि 'बौद्धोंके समस्त धार्मिक ग्रन्थ तीन भागोंमें विभक्त हैं, जो 'त्रिपिटक' कहलाते हैं। इनके नाम क्रमशः "विनयपिटक', 'सुत्तपिटक' और ' अभिधम्म' पिटक हैं । प्रथम पिटकमे बौद्ध मुनियोके आचार और नियमोंका, दूसरेमें महात्मा बुद्धके निज उपदेशोंका और तीसरेमें विशेषरूपसे बौद्ध सिद्धान्त
और दर्शनका वर्णन है । 'सुत्तपिटक के पांच 'निकाय ' व अग हैं। इनमें अनेक स्थानोंपर जैन धर्मका उल्लेख करके वर्णन कियाँ गया है। इनमें से जिनका अध्ययन करनेका सौभाग्य हमें प्राप्त हुओं
१. भगवान महावीर परिशिष्ट पृष्ट. २७५. २. दी, साम्स ओफ दी सिसटर्स भूमिका पृष्ट. १५ ३. भगवान महावीर पृष्ट २७५.