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[भगवान महावीरइसप्रकार भगवान महावीर और म. बुद्धके जीवन है और उनसे जो शिक्षायें हमें प्राप्त होती हैं वह भी प्रकट है। दोनों ही युगप्रधान पुरुष समकालीन और क्षत्री राजकुमार थे । भ० महावीरसे म० बुद्ध प्रायः तीन वर्ष उमरमें बड़े थे। उन्होंने गृहत्याग करके विविध धर्मपन्योका अभ्यास किया था और वे एक समय जैन मुनि भी रहे थे। उपरांत मध्यमागको प्राप्त करके ३५ वर्षकी अवस्थासे उन्होंने उसका प्रचार करना प्रारम्भ किया था। इस समय भगवान महावीर एक सामान्य मुनिकी तरह छमस्थावस्थामें थे। इस उपदेशमें म० बुद्धने सामयिक परिस्थितिको बहुत कुछ सुधारा था; परन्तु अपने पूर्ण जानके अभावमें उनका उपदेश सेन्डातिकतासे रहित था। इसपर भी तपस्याकी कठिनाईके अभाव और म० बुद्धके व्यक्तिगत प्रभावसे उसका प्रचार विशेप हुआ था।
इसप्रकार स्वयं म० बुद्धद्वारा बौद्धधर्मकी सृष्टि हुई थी। उनसे पहले यह धर्म भारतमें नहीं था क्योकि यदि यह होता तो म० बुद्ध अन्यत्र कहीं न भटककर अपनेसे पहले हुये बुद्धोके बताये मार्गका अनुसरण करते । यही कारण है कि बौद्धग्रन्थों में बुद्धोकी संख्या भी ठीकसर एक नहीं बताई गई है । भगवान् महावीरने इसके विपरीत अपने पूर्वगामी तीर्थंकरों के समान ही एक नियमित साधुनीवनका अभ्यास किया था और अन्ततः सनातन जैनधर्मका पुनरुद्धार किया था, जो देश-विदेशोंमें फैल गया ! म० बुद्धका वौडधर्म सम्राट अशोकद्वारा विदेशोंमें-खासकर चीन, जापानमें-विशेष फैलाया गया था किन्तु जैनधर्म इसके पहले ही जैनमुनियों द्वारा यूनान आदि देशोंमें पहुंच चुका था । चंद्रगुप्त मौर्य