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________________ १.८४] [भगवान महावीरनके उदार धर्मोपदेशसे लाभ उठाया था। उनका उपदेश किसी खास सम्प्रदायके लिये नहीं था। खासकर सामान्य जनता (Masses) को लक्ष्यकर उनका उपदेश होता था । यही कारण था कि उनके उपदेशसे मनुष्य अपने आपसी प्रभेदको भूल गये थे । इससे स्पष्ट प्रकट है कि भगवान समयानुसार परिवर्तन-सुधारको आवश्यक समझते थे। उस समय साम्प्रदायिकता वेहद बढ़ी थी, उसका अत होना लाजमी था। भगवानके दिव्योपदेशसे उसका अन्त होगया। यही नहीं उस समय कठिन ब्रह्मचर्य और तपश्चरणकी भी आवश्यक्ता थी, भगवानने अपने दिव्य जीवनसे इसका आदर्श उपस्थित कर दिया था। आजीवक ब्राह्मण आदि साधुजन जिस समय ब्रह्मचर्यकी आवश्यक्ता नहीं समझ रहे थे, उस समय भगवानको ब्रह्मचर्य और कठिन तपश्चरणका उपदेश अपने चारित्र द्वारा गृहस्थ अवस्थासे प्रकट करना लानमी ही था। आज भी भारतहितके लिये हमको भगवानके इस आदर्शका अनुकरण करना श्रेयस्कर है। म. बुद्ध भी सामायिक सुधारके पक्के हामी थे। उन्होंने समयकी परिस्थितिके अनुसार बहुत कुछ सुधार किया था, यह हम देख चुके हैं। उनके उपदेशसे भी लोग अपनी साम्प्रदायिकताको गंवा बैठे थे। इस तरह उनका जीवन भी सामयिक सुधारके लिये हर समय तैयार रहनेका ही उपदेश देता है। तीसरी मुख्य बात भगवान महावीरके जीवनकी यह है कि उन्होंने स्त्रियोंका विशेष आदर दिया था। उनके समवशरणमें पुरुषोंक पहिले स्त्रियोंको स्थान प्राप्त था। यद्यपि स्त्रियोंको भी समान धर्माधिकार प्राप्त थे परन्तु उनको स्त्री योनिसे मोक्ष लाम करनेकी
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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