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-और म० बुद्ध ]
[१८३ रिक्त उसको प्राप्त करनेका कोई दूसरा मार्ग होना चाहिये। परिणामतः उन्होंने उसकी प्राप्तिका एक मध्य मार्ग ढून्ढ लिया । उस समय उन्हे इस दृढ़ श्रद्धानके अनुरूप साधारण ज्ञानसे एक उच्च प्रकारके ज्ञानकी प्राप्ति हुई थी, जैसे कि हम देख चुके हैं। वास्तवमें पुरुषार्थ अकारथ जानेवाला न था। उन्होंने अपने उस मध्यमार्गका प्रचार सर्वत्र किया ! यद्यपि पूर्ण सर्वज्ञताके अभावमें उनका धर्मोपदेश पूर्णता और सैद्धांतिकतासे रहित था; परन्तु उन्होंने तात्कालिक आवश्यक सुधारसे अपनी मोहनी सुरतके बल उसका बहुत कुछ प्रचार कर लिया। उस समय लोग आपसी विवादोमे ही समय नष्ट करते थे, उन्होंने उसको अधर्ममय ठहरा कर एक नियमित ढंगसे जीवन व्यतीत करनेका उपदेश दिया। सार्वभौमिक प्रेमका उपदेश उन्होंने भी दिया था, किन्तु वह पूर्णत: सबके लिये समान हितकारी नहीं था। विचारे निरापराध पशुओको यद्यपि यज्ञवेदीसे बहुत कुछ छुटकारा मिल गया था, परन्तु मनुष्योंकी जिह्वा लम्पटताके कारण उनके प्राण संकट में ही रहे थे। बुद्धने इस ओर ध्यान नहीं दिया। किन्तु इस असैद्धांतिकताके रहते हुए भी म० बुद्धका जीवन भी ज्ञानोपार्जनके लिए दृढतासे प्रयत्न करनेका ही उपदेश देता है । केवल साधन और साध्यके उचित खरूपका ध्यान रखना यहां आवश्यक है।
दूसरी ओर भगवान महावीरका जीवन परम उदारताके साथ साथ समयानुसार परिवर्तनके लिये तैयार रहनेकी प्रकट शिक्षा देता है। उनके परम उदार धर्मोपदेशसे सर्व जाति और पांतिके एवं सर्व प्रकारकी सभ्यताके मनुष्य प्रतिबुद्ध होकर परस्पर गले मिले थे। क्षत्री, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र, चाण्डाल, पशु, पक्षी सबहीने भगवा