________________
१८२ ]
[ भगवान महावीर
नहीं है । यह भगवान् महावीरके चरित्र और उपदेशसे स्पष्ट प्रगट है । उद्देश्य प्राप्तिके लिये अपनी परमोत्कृष्ट अवस्थामें भगवानने एक नितान्त, सरल और वैज्ञानिक मार्ग बतलाया था, जैसे कि हम देख चुके हैं । इस मोक्षमार्गपर चलता हुआ प्राणी साम्य भावका पक्का हिमायती होता है । प्रत्येक जीवात्माको अपने समान समझकर वह किसी भी प्राणीको मन, वचन, काय द्वारा कष्ट नहीं देता है । तथापि गृहस्थावस्थामें रहते हुये भी वह नियमित ढंगसे सांसारिक कार्यों को पूर्ण करता है । इस रीतिसे वह अपना जीवन व्यवहार बनाता है कि वह स्वयं उद्देश्य प्राप्तिकी ओर अग्रसर होता जाय और दूसरोंको भी उस ओर चलनेमे सहायता दे ! सचमुच भगवानका दिव्योपदेश सार्वभौमिक प्रेम, शौर्य और सहनशीलताका खासा पाठ पढ़ाता है; जिसका पालन करनेसे केवल भारतका नहीं, प्रत्युत समग्र मानव समाजका दुःख सर्वथा नष्ट होसक्ता है । इस प्रकार उत्तम और सरल जीवन व्यतीत करनेका विधान हमे अन्यत्र कठिनतासे मिलता है । इसका कारण यही है कि भगवानने अटल विश्वासके साथ घोर परिश्रम करके अपने पुरुषार्थके बल उस पर - मोत्कृष्ट अवस्थाको प्राप्त कर लिया था जिसमें ज्ञान और प्रकाश स्वयं मूर्तिमान् हो आ विराजते है ! अतएव भगवानका दिव्य जीवन हमको ज्ञानोपार्जन में पूर्ण दत्तचित्त रहनेका प्रगट उपदेश देरहा है ।
म० बुद्धको भी आर्योंके उत्कृष्ट ज्ञानमें दृढ़ श्रद्धान था वह इतना अटल था कि छः वर्षकी कठिन तपस्या करनेपर भी जब उनको उसकी प्राप्ति नही हुई तब भी उनका विश्वास उसमें से जरा भी ढीला न पड़ा ! उन्होंने यही कहा कि इस कठिन मार्गके अति