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[ भगवान महावीर (७)
उपसंहार । भगवान् महावीर और म० बुद्धके विभिन्न जीवन एक दूसरेके नितान्त विपरीत थे, यह अब हमें अच्छी तरह ज्ञात है। हम निस आशाको लेकर इस ओर प्रयत्नशील हुये थे, वह प्रायः फलवती दिखाई पड़ रही है । उसके फलके अनुसार भगवान महावीरके सम्बंधमें जो मिथ्या भ्रम फैल रहा है उसका वास्तविक निराकरण हमारे नेत्रोके अगाडी है । हम जानते है कि भगवान महावीर म० बुद्धसे अलग एक ऐतिहासिक महापुरुष थे। उन्होने म० बुद्धकी तरह किसी नवीन मतकी स्थापना नहीं की थी; बल्कि पहिलेसे जो जैनधर्म चला आरहा था, उसका पुनरुत्थान मात्र किया था। जैन धर्मकी स्थापना म० बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्मका परिवर्तन होनेके बहुत पहिले हो चुकी थी !
किन्तु इममें संशय नहीं कि भारतके ये दो चमकते हुये रत्न सार्वभौमिक प्रकाशको पा रहे हैं । इन दोनों युगप्रधान पुरुषोंका व्यक्तित्व प्रारम्भसे ही एक दूसरेसे विभिन्न रहा है। अथ च नन्हीं अवस्थासे ही वह अतीव प्रभावशाली था। अहिसाका दिव्य उपदेशउनके व्यक्तित्वसे किस तरह प्रगट होरहा था यह हम प्रगट कर चुके है । सचमुच भगवान् महावीरके दिव्य जीवनमें मुख्यता यह थी कि वह यथार्थ सत्यके अन्वेषीका एक अनुपम आदर्श था। अनुपम इसलिये था कि उन्होने अध्ययन, मनन और तपश्चरण द्वारा पूर्ण उत्कृष्टताके परमात्म पदको उस ही जीवनमें प्राप्त कर लिया था। जरा विचारिये तो कि ज्ञानोपार्जनका मार्ग