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[ भगवान महावीरपूर्वक न मारना चाहिये, सिर्फ यही उनका कहना था,"' अतएव म० बुद्धके चारित्रनियम जैनधर्मकै अणुव्रतोंसे भी समानता नहीं करसक्ते यह प्रकट है। वास्तवमें निसप्रकार सिद्धान्त विवेचनमें म० बुद्धने वैज्ञानिकता और पूर्णताका ध्यान नहीं रक्खा वैसे ही चरित्रनियमोके विषयमें देखने मिलता है। एक आधुनिक विद्वान् इस विषयमें जो लिखते है वह दृष्टव्य है:___ "परीक्षा करनेपर यह प्रकट हो जाता है कि बौद्धधर्मका सुन्दर आचार वर्णन एक कपित नींवपर स्थिर है । हमें वेदोकी प्रमाणिकताका निषेध करना है, अच्छी बात है । हमें अहिंसा और त्यागका पालन करना है, अच्छी बात है। हमें कोंके बन्धन तोडने हैं, अच्छी बात है, परन्तु सारे संसारके लिए यह तो बताइये हम है क्या ? हमारा ध्येय क्या है ? स्वाभाविक उद्देश्य क्या है ? इन समस्त प्रश्नोका उत्तर बौद्धधर्ममें अनूठा पर भयावह है, अर्थात 'हम नहीं है। तो क्या हम छायामें श्रम परिश्रम कर रहे है ? और क्या अंधकार ही अतिम ध्येय है ? क्यों हमे कठिन त्याग
१. पुरातत्व भाग ३ ४ ३२७. इश्री लेखमें बौद्र लेखकने जन प्रमोंपर मास मक्षणका आरोप करनका प्रयत्न श्वे० ग्रन्थोके आधारसे किया है, किन्तु आचारागसूत्रके जिस अशको उन्होंने पेश किया है उसका अनुवाद डॉ. जैकोषीने (Jam Sutras I ) में यह नहीं किया है जो इन वौद्ध लेखकने दिया है । इमलिये इस अशसे भी यह मारोप प्रमाणित नहीं है। फिर यदि जन प्रमाण मास भोजन करते होने, तो क्या चौर इनको यों ही छोड़ देने जर ये शालीम उनश गुला विरोध कर रहे थे? नय चौद्र प्रन्यों मे जैन प्रमोशी निरामिपता प्रमाणित है। (देसो दी जेन होटल मंगजीन भाग ६ न. २ पृष्ठ ८-२१ भोर इन्द्रियन हिस्टोरील बारटनी भाग २ अंक ४)