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________________ और म० बुद्ध] [ १७१ जब मांस बाजारमें नहीं मिला तो बौद्ध गृहस्थिनने स्वयं अपनी जांघको काटकर मांस भोजन तैयार करके बौद्ध संघको खिलाया था यह उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि म० बुद्धकी अहिसा जैन अहिंसासे कितनी हेय प्रकारकी थी। जैन अपेक्षा वह हिसा ही है। म० बुद्धने केवल प्रकटरीतिसे प्राणी बध करनेको-जैसे यज्ञमें होम कर पशुओंको नष्ट करनेका विरोध किया था। सुक्ष्म हिंसाकी ओर उन्होने दृष्टिपात ही नहीं किया। यह खयाल ही नहीं किया कि मृत मांसमे भी कोटिराशि सूक्ष्म जीवोकी उत्पत्ति होती रहती है, जैसे कि आजकल विज्ञान (Science)से भी प्रमाणित है। इस अवस्थामे भी मांसको खाना स्पष्टतः हिसा करना है । इस तरह जैन अहिसाका महत्त्व प्रकट है। स्वय आधुनिक बौद्ध विद्वान श्री धर्मानंद कोसाम्बीका निम्न कथन जैन अहिंसाकी विशेषताको प्रकट करता है। वह लिखते है कि " म० बुद्धपर यह आरोप था कि लोगोके घर आमंत्रण स्वीकार करके वह मांस भोजन करते थे और गृहस्थ लोग उनके लिये प्राणियोंका बध करके वह मांस भोजन तैयार करते थे। जैन श्रमण दूसरेके घरका आमंत्रण स्वीकार नही करते। यदि खास उनके लिये कोई अन्न तैयार किया गया हो (उदिसकट) तो वे उसको निषिद्ध समझते थे और अव भी समझते है, क्योकि उसके तैयार करनेमें अग्निके कारण थोड़ी बहुत हिंसा होती ही है और स्वीकार करनेसे श्रमण उस हिसाका मानो अनुमोदन ही करता है । अहिसाकी यह व्यापक व्याख्या बुद्धभगचानको पसंद नहीं थी। जानबूझकर किसी भी प्राणीको क्रूरता १. Vinaya Texts. - -
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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