SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - - -और म० चुद्ध] [१६७ चारित्र नियम निर्मित था।' इस चारित्र नियममें आठ बातें गर्मित थी; अर्थात् (१) सत्य दृष्टि (Right Viewe), (२) सत्य उद्देश्य (Right Aspirations), (३) सत्यवातों (Right Speech) (४) सत्य आचरण (Right Conduct), (५) सत्य जीवन (Right Livlilhood), (६) सत्य एकाग्रता (Right Mindfu___Iness), (७) सत्य प्रयास ( Right Effect ), (८) और सत्य ध्यान अवस्था अर्थात मानसिक शांति ( Right Raptune)।' इस अष्टाङ्ग मार्ग द्वारा ही संसारप्रवाहसे व्यक्तिको छुटकारा पाकर अपने उदेश्यकी प्राप्ति होते मानी गई है। किन्तु यह अष्टांग मार्ग फेवल भिक्षुओ और भिक्षुणियोके लिये है । गृहस्थ अनुयायियोकी गणना बौद्ध संघमे नही की गई है । इसका यही कारण है कि बुद्धने गृहस्थोके लिये कोई खास आत्मोन्नतिक्रम नियत नहीं किया था, जैसा कि जैनधर्ममें ( ११ प्रतिमायें) है। सचमुच बौद्ध भिक्षुओका जीवन भगवान महावीरके संघके इन व्रती श्रावकोंसे भी सरल था। बुद्धकी मान्यता थी कि मुविधामय सुखी सांसारिक जीवन व्यतीत करनेपर भी संसारसे मुक्ति मिल सक्ती है, परन्तु जनधर्ममें यह म्धीस्त नहीं है। वस्तुतः जबतक संसारसे बिल्कुल ही संबंध नही त्याग दिया जायगातबतक फर्मोसे छुटकारा मिलना असंभव है। चौ साधुओंने सुविधामय जीवनकी अपेक्षा ही बौद्ध सघमें व्रती श्रावकोको कोई भी स्थान प्राप्त नहीं था । हां, सामान्य ग्रहस्थ अनुयायी दुखदेवके थे,जैसे कि जन सघमें संमिलित व्रती श्रावकोंक अतिरिक्त भगवान महावीरफे साधारण श्रद्धानी श्रावक भीये| अन्तः मिरिन्दन २१.५.२. बुट्रिस्टग्लिॉसफी पृष्ट ११५ ३ मजितमारा ९३ 1
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy