SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - और म० बुद्ध ] [ १६५ स्वराज्यका उपभोग करती है । सच्चा स्वराज्य यही है, इसीको पानेका उपदेश भगवान महावीरने दिया था । इस हिंसक जमाने में सच्चे भारतवासियोंको इस स्वराज्यप्राप्तिके मार्ग में दृढ़ता से कर्तव्यपरायण हो जाना परम उपादेय है । अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अचौर्य और अपरिग्रहका अभ्यास प्रारम्भ करना स्वयं उनकी आत्मा एवं भारतके हितका कारण है । अहिंसामें गंभीरता है, शौर्य्यता है । सत्यतामें दृढता है | जहां शौर्यता और दृढ़ता प्राप्त हुई वहां लोभ कषायको तिलाञ्जलि देते हुये आकांक्षा और वाञ्छाको नियमित किया जाता है और स्वावलम्बी बननेकी तीव्र अभिलाषा अपना जोर मारने लगती है जिसकी प्रेरणासे वह आत्माभिमुख हुआ वीर संयमका अभ्यासी हो जाता है और क्रमशः आत्मोन्नति करता हुआ पूर्ण स्वाधीनताको पालेता है । यही सच्चा सुख है। भारतीयताके लिये भगवान महावीरका उपदेश अतीव कल्याणकारी है । लोकके कल्याणकी भावनाका जन्म उसको आदर देनेसे होता है । अब जरा आइये पाठकगण, म० बुद्ध के विषय में भी किञ्चित् और विचार करलें । दुःख और पीड़ा कहां हैं, कैसे हैं और किसको हैं, यह हम उनके बताये मुताबिक पहिले देख चुके हैं । उपरान्त उन्होंने इस दुःख और पीड़ासे छूटनेका उपाय यो बतलाया था । " हे राजन् ! सब ही अज्ञानी व्यक्ति इंद्रियसुखमें आनन्द मानते हैं, उन्हींकी वासनापूर्ति में सुखी होते हैं, उन्हीके पीछे लगे रहते हैं। इसलिए वे मानुषिक कषायोंकी बाड़में बहे चले जाते 1 हैं । वे जन्म, जरा, मरण, दुःख, शोक, आशा, निराशा से मुक्त नहीं हैं। मैं कहता हूं वे पीडासे मुक्त नहीं होते हैं, किन्तु राजन् !
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy